किशोर पारीख जी का ब्लॉग
मैंने उनके ब्लॉग पर यह पढ़ा
1- बाजार में हमें पीटने को सारे बंदे चिपट गये
पत्नी ने काम वाली बाई को अपनी पुरानी साड़ी दी थी
और हम उसे अपनी पत्नी समझ के पीछे से लिपट गये
2- धरती पे तुम, आसमाँ में तुम, पूरे जहाँ में तुम,
फिज़ाओं में तुम, घटाओं में तुम, हवाओं में तुम,
ठीक ही कहा है किसी ने
बुरी आत्मा का कोई ठिकाना नही होता
3- एक लड़की से मैने रोने का कारण पूछा तो वो बोली
मेरे पिता चाइनीज थे बेचारे भरी ज़वानी मे हम सबको छोड़ कर चले गये
बस इसी बात का गम है मैने कहा चुप हो जा बच्ची
चाइना का माल तो चलता ही कम है
आज मूड आफ़ सा था ब्लॉग जगत की घटना के कारण, सोचा कि दिल बहलाया जाए और इस ब्लॉग पर ऐसा ‘सौदा‘ काफ़ी है।
आप भी देखिए
http://udghoshak.blogspot.com/
और आख़ेरत और दुनिया (दोनों) ख़ास हमारी चीज़े हैं
-
और जब वह हलाक होगा तो उसका माल उसके कुछ भी काम न आएगा (11)
हमें राह दिखा देना ज़रूर है (12)
और आख़ेरत और दुनिया (दोनों) ख़ास हमारी चीज़े हैं (13)
तो हमने ...
6 comments:
अनवर जी दिल बहलाने के लिए अच्छा ब्लॉग ढूंढ कर लाये हैं आप .ब्लॉग जगत की कौन सी घटना के कारण आप का मूड ऑफ है ?इसका भी खुलासा करना चाहिए था .खैर आपकी मर्जी .पोस्ट वाकई पसंद करने लायक है .इसे ''ये ब्लॉग अच्छा लगा '' पर पोस्ट कीजियेगा .आपकी हिताकांक्षिनी [WELL WISHER ]
आदरणीया शिखा जी ! जब कही गई बात को उचित संदर्भ में नहीं समझा जाता तो ग़लतफ़हमियां पैदा हो जाती हैं और उसकी चोट दिल पर ज़रा गहरी लगती है। इससे पिछली पोस्ट में यही बताया गया है। उसमें शास्त्री जी और वंदना जी के बीच जो कुछ कहा सुना जा रहा है, उसी की वजह से दिल को आघात सा लगा। जब दोनों ही तरफ़ अपने हों तो दुख ज़्यादा होता है। इसका दुख भी अपना लगता है और उसका भी और इस झगड़े में तो तीसरा पक्ष रविकर जी भी अपने से ही लगते हैं।
यही है सारी कहानी मूड आफ़ होने की, कभी कभी तो सचमुच दिल करता है कि काहे की ब्लॉगिंग यार, छोड़ इसे, कुछ और कर ले भाई, यहां तो कितना भी कर लो, एक वाक्य में ही आदमी सारे किये कराये पर पानी फेर देता है।
आपकी ख्वाहिश ज़रूर पूरी की जाएगी, प्रधान संपादिका जी !
मुबारक हो आपको एक नया ओहदा !!
see
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/bad-situation.html
ओहदा अपने साथ जिम्मेदारी भी देता है .आलोचना भी .ब्लॉग हित में किये गए कार्यों को गुंडागर्दी तक की संज्ञा दी जाती है .अपने कर्तव्य से विचलित न होना ही पद पर बैठे व्यक्ति को पद के योग्य बनाता है .अपनों की अपेक्षाएं भी जुडी रहती है .पद प्राप्त करना एक बात है और उसकी गरिमा बनाये रखना .दूसरी .आपके सहयोग की पूरी आशा है ..
2- धरती पे तुम, आसमाँ में तुम, पूरे जहाँ में तुम,
फिज़ाओं में तुम, घटाओं में तुम, हवाओं में तुम,
ठीक ही कहा है किसी ने
बुरी आत्मा का कोई ठिकाना नही होता
बहुत पसनद आई आपकी पसंद और उसमे भी सबसे ज्यादा ये अद्भुत लगी.आभार आपका और किशोर जी दोनों का बहुत बहुत
वाह, बहुत बढ़िया!
हल्का-फुलका माहौल दिल को सुकून देता है!
वाह, बहुत बढ़िया!
haaaaaa
Post a Comment