हर साल होलिका में औसतन प्रत्येक शहर में 1000 से अधिक पेड़ खाक हो जाते हैं। यह वही पेड़ हैं, जो लाख जतन और जागरूकता के बाद 15-20 साल में हमें छाँव, फल, प्राणवायु या कहें जीवन देने लायक बनते हैं। हर साल इतने वयस्क पेड़ों की कटाई पर्यावरण के लिहाज से बहुत ज्यादा नुकसानदेय है।
एक सामान्य होली में करीब पाँच से छ: क्विंटल लकड़ी जल जाती है। अनुमान के मुताबिक प्रत्येक शहर में औसतन चार हजार होलिका स्थलों पर 20 हजार क्विंटल लकड़ी स्वाहा होती है। इतनी लकड़ी 1000 वयस्क पेड़ों के पूरी तरह काटे जाने के बाद मिलने वाली लकड़ी के बराबर होती है।
आबादी के अनुपात में शहर पैर पसारते जा रहे हैं। खेत उजड़कर कॉलोनियाँ बन गये। पगडंडियाँ सड़क में तब्दील हो गईं। शहर के विस्तार के साथ तो होलिका स्थलों की संख्या बढ़ी ही, इसके अलावा सामाजिक विघटन ने भी इनकी संख्या में इजाफा किया। कभी कई-कई गाँवों और कॉलोनियों में एक ही होली जलती थी, परंतु अब गली-मोहल्ले की बात छोडि़ए एक ही परिवार के एक ही जगह दो घर हैं, तो होलिका दहन भी दा जगह हो रहा है। जितने होलिका दहन स्थल बढ़ेंगे, उतने ही अधिक पेड़ों पर संकट होगा।
एक पेड़ कई इंसानी जिंदगियों के बराबर बैठता है। वन विभाग के अनुसार, एक सामान्य व्यक्ति एक मिनट में औसतन 12 बार साँस लेता है और हर साँस में 500 मिलीलीटर हवा लेता है। इस हिसाब से एक व्यक्ति 1.752 टन ऑक्सीजन हर साल उपयोग करता है, जबकि मध्यम उम्र का एक पेड़ (जिसमें लगभग 50 हजार पत्तियाँ हों, एक साल में करीब 1.6 टल ऑक्सीजन उतसर्जित करता है। अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक पाब्लो द्वारा वर्ष 2001 की गणना के आधार पर किए गये शोध के अनुसार भारत में एक पेड़ पर 16 व्यक्ति निर्भर हैं। महारनगरों में यह निर्भरता प्रति वृक्ष 1500 व्यक्तियों से ज्यादा पहुँच जाती है। (साभार: दैनिक जागरण, फिरोजाबाद, दिनांक 02 मार्च, 2012)
Source :
Source :
0 comments:
Post a Comment