वंदना गुप्ता जी का मानना है कि नारी संतुष्टि के लिए यौन संबंध में पुरूष का धैर्य आवश्यक है।
यह संभवतः पहला मौक़ा है जबकि हिंदी ब्लॉग जगत में किसी धार्मिक संस्कारवान नारी ने यह मांग की है कि एक नारी भी निजी संबंध में संतुष्टि पाने का उतना ही हक़ रखती है जितना कि पुरूष।
इसी के साथ उन्होंने कहा है कि शारीरिक संबंध में आत्मिक और मानसिक संतुष्टि भी निहित है।
वंदना गुप्ता जी को श्री कृष्ण जी की कथा वाचिका के रूप में जाना जाता है।
इस दृष्टि से उनकी पंक्तियों का महत्व बढ़ जाता है।
उनकी पोस्ट पर आई टिप्पणियों ने भी इस पोस्ट का आकर्षण बढ़ा दिया है।
एक लंबे अर्से से शांत चल रहा हिंदी ब्लॉग जगत अचानक ही हिल सा गया है।
एक नारी ने यह क्या कह दिया ?
और वह भी इतना खुलकर ?
...अरे भाई ! नारी के कोमल भाव अगर उसके मन में ही दम घोंट दें तो उसके मन में बहुत से कॉम्प्लेक्सेज़ बन जाते हैं और तब वह बहुत से मनोरोग की चपेट में तो आ ही जाती है, बहुत सी औरतों के क़दम तक बहक जाया करते हैं।
हम आए दिन अख़बारों में पढ़ते रहते हैं कि
'पांच बच्चों की मां अपने प्रेमी के साथ भाग गई है।'
'पत्नी ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या कर दी।'
इस तरह की घटनाओं में ज़्यादातर के पीछे केवल यही कारण होता है कि पति अपनी पत्नी की संतुष्टि की परवाह न करके उसे अपनी जागीर समझ लेता है कि वह जैसे चाहे उसे बरते।
यह एक ग़लत बात है।
जैसा मर्द है वैसी ही औरत है।
संतुष्टि दोनों के लिए ही ज़रूरी है।
सुखी वैवाहिक जीवन का आधार यही है।
मां बाप आपस में संतुष्ट होंगे तो उनमें अंडरस्टैंडिंग भी अच्छी होगी और वे अपने बच्चों की परवरिश भी अच्छी कर सकेंगे।
समाज में आम पाई जा रही समस्या पर वंदना जी का विचार कुछ को बहुत भाया तो कुछ को ज़रा न सुहाया।
वंदना जी की पोस्ट का शीर्षक है ‘संभलकर, पोस्ट का विषय बोल्ड है‘
आपको उनकी पोस्ट और हमारी रिपोर्टिंग कैसी लगी ?
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16 अप्रैल 2012
वंदना जी ने अपनी कविता को अपने ब्लॉग से हटा लिया है लिहाज़ा अपनी याददाश्त के सहारे कुछ बिंदुओं का उल्लेख किया जाता है ताकि पुरूष वर्ग इन ख़ास टिप्स का विशेष ध्यान रखे। उन्होंने काव्यात्मक अंदाज़ में कहा है कि
कविता का सारांश
नर और नारी के बीच स्वाभाविक आकर्षण पाया जाता है।पुरुष का ध्यान फॉर प्ले और आफ्टर प्ले की और भी खिंचा गया है।
इसी आकर्षण के कारण दोनों में विवाह होता है।
दुल्हन सेज पर पहुंचती है।
दूल्हा धीरे धीरे अपनी दुल्हन के संकोच को दूर करता है।
दुल्हन को भी उत्कंठा होती है लेकिन वह अपनी उत्कंठा को संकोचवश दबाए रहती है।
मर्द को जल्दबाज़ी दिखाने के बजाय धैर्य से काम लेना चाहिए।
हमेशा ही पुरूषों की तरह एक्टिव रहने के बजाय औरत के मन को समझते हुए उसे भी कुछ करने का मौक़ा देना चाहिए।
संभोग के बाद जब पुरूष स्खलित हो जाए, तब भी उसे अपनी पत्नी से तुरंत ही विलग नहीं होना चाहिए।
इससे औरत को संतुष्टि मिलती है।
शारीरिक संतुष्टि का मानसिक और आत्मिक संतुष्टि में अहम रोल है।
8 comments:
वंदना जी का मानना और आपकी समर्थनपूर्ण रिपोर्टिंग दोनों जानदार और सार्थक हैं
हाँ अक्सर यही होता है -पुरुष सुरक्षा कवच धारण करके कुरुक्षेत्र के मैदान में कूद जाता है और यहाँ वहां शश्त्र फैंक चला आता है यह भी नहीं देखता लक्ष्य संधान हुआ या नहीं .जबकी सम्भोग पहली सीढ़ी है समाधि की योग की ध्यान की .असंतुष्ट व्यक्ति का सदा ही ध्यान भंग होगा .
vandana ji aur unki kalam dono hi is prernaaspad aur sateek aalekh ke liye badhaai ke paatr hain vo aaj ki naari hain.aapke dwara unki post ka vishleshan bhi sarahniye hai.aap dono ko badhaai.
-----वन्दना की पोस्ट का अनवर जमाल द्वारा मूर्खतापूर्ण शीर्षक’ सम्भोग रहस्य’ देने से ही सारा बवाल खडा हुआ.....
baat reporting ki h to achhi h.....
baat ho rhi bahason ki h....to kaun apni taang adaye.
@ डा. श्याम गुप्ता जी ! आपने बौखलाए हुए अंदाज़ में जिस बदतमीज़ी से वंदना जी को धिक्कारा है उनकी पोस्ट पर उसकी वजह से उन्हें अपनी पोस्ट ही हटानी पड़ गई।
क्या ज़रूरत थी आपको वहां डेढ़ दर्जन कमेंट करने की ?
पता नहीं किस तरह के आदमी हैं आप ?
अपनी बदतमीज़ियों का ठीकरा फोड़ने के लिए अब आप इधर तशरीफ़ ले आए !
पुरुषों की लैंगिक समस्याओं पर तो बेशुमार लेख लिखे जाते हैं। लेकिन स्त्रियों की लैंगिक समस्याएं अधिक गंभीर है और पुरुष उन पर ध्यान नहीं देते हैं। संसर्ग करके बस अपना स्खलन करने को ही पुरुष सेक्स समझ लेता है। आम आदमी स्त्री के सुख और संतुष्टि के बारे में सोचता ही नहीं है। इस लिए मैंने इस विषय पर लेख लिखा था जो कई पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ था। इसकी लिंक है।
http://flaxindia.blogspot.in/2011/02/blog-post_2525.html
लेख की प्रस्तावना इस तरह है.....
यदि नारियां ऐसा सोचती हैं कि आधुनिक चिकित्सकों ने उनकी लैंगिक समस्याओं को अनदेखा किया है, उनके लैंगिक कष्टों के निवारण हेतु समुचित अनुसंधान नहीं किये हैं तो वे सही हैं। सचमुच हमें स्त्रियों के लैंगिक विकारों की बहुत ही सतही और ऊपरी जानकारी है। हम उनकी अधिकतर समस्याओं को कभी भूत प्रेत की छाया तो कभी उसकी बदचलनी का लक्षण या कभी मनोवैज्ञानिक मान कर उन्हें ज़हरीली दवायें खिलाते रहे, झाड़ फूँक करते रहे, प्रताड़ित करते रहे, जलील करते रहे, त्यागते रहे और वो अबला जलती रही, कुढ़ती रही, घुटती रही, रोती रही, सुलगती रही, सिसकती रही, सहती रही..............
लेकिन अब समय बदल रहा है। यह सदी नारियों की है। अब जहाँ नारियाँ स्वस्थ, सुखी और स्वतंत्र रहेंगी, वही समाज सभ्य माना जायेगा। अब शोधकर्ताओं ने उनकी¬ समस्याओं पर संजीदगी से शोध शुरू कर दी है। देर से ही सही आखिरकार चिकित्सकों ने नारियों की समस्याओं के महत्व को समझा तो है। ये स्त्रियों के लिये आशा की किरण है। 1999 में अमेरिकन मेडीकल एसोसियेशन के जर्नल (JAMA) में प्रकाशित लेख के अनुसार 18 से 59 वर्ष के पुरुषों और स्त्रियों पर सर्वेक्षण किये गये और 43% स्त्रियों और 31% पुरुषों में कोई न कोई लैंगिक विकार पाये गये। 43% का आंकड़ा बहुत बड़ा है जो दर्शाता है कि समस्या कितनी गंभीर है। ..............
ओपी जी...ये अमेरिका का सर्वेक्षण है वहां तो लैंगिक से अन्यथा कोइ बात-विचार है ही नहीं.......यहाँ के डाक्टर कब खुद सर्वेक्षण करेंगे...या नक़ल पर चलकर ही खुश होते रहेंगे...स्त्रियों की लैंगिक समस्या अज्ञान से या तुलना से ---- देखकर , सीखकर, पढ़कर की गयी तुलना से प्रारम्भ होती है....अन्यथा कोइ समस्या नहीं है.....
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