Monday, May 14, 2012

बीमारी और इलाज के बारे में -Dr. T. S. Daral

डा. टी. एस. दराल जी की पोस्ट, बीमारी और इलाज के बारे में प्रामाणिक जानकारी देते हुए.

ज़रा संभल के --- स्वास्थ्य के मामले में चमत्कार नहीं होते .

शायद हमारा देश ही एक ऐसा देश होगा जहाँ रोगों का इलाज करने के लिए दादी नानी से लेकर साधु बाबा तक सभी चिकित्सक का काम धड़ल्ले से करते हैं . न सिर्फ मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियाँ ही अनेक हैं , बल्कि यहाँ बिना किसी डिग्री धारण किये और बिना सरकार से मान्यता प्राप्त किये अनेकों सिद्ध पुरुष , स्व घोषित चिकित्सक और घराने/ सफ़ाखाने मोटी रकम वसूल कर धर्मभीरु और मूढमति जनता को लूटते हुए मिल जायेंगे .

आजकल टी पर भी ऐसे अनेकों कार्यक्रम दिखाई देने लगे हैं जहाँ कोई ज्योतिषी, पंडित जी , टेरो कार्ड रीडर , वास्तु एक्सपर्ट , साधु , बाबा या कोई भी पहचान रहित बंदा पेट के कीड़ों से लेकर कैंसर तक का शर्तिया इलाज करने का दावा करते हैं .

हमें तो सबसे ज्यादा हास्यस्पद तब लगता है जब एक ज्योतिषी अपना कंप्यूटर लेकर बैठ जाता है और फोन पर किसी की स्वास्थ्य समस्या सुनकर तुरंत computerized इलाज बता देता है .

एक हरियाणवी लाला तो हर बीमारी का इलाज घर में मिलने वाले मसालों से ही बता देता है . माना हल्दी बड़ी गुणकारी है लेकिन हर तरह के रोग इसके सेवन से ठीक हो जाते तो सैकड़ों दवा निर्माण कम्पनियाँ ( pharmaceutical firms ) बंद न हो जाएँ . ऊपर से ज़नाब हर फोन करने वाले को यह भी बताते हैं , हमारा पैकेज खरीद लो , शर्तिया फायदा होगा . पैकेज भी सौ दो सौ का नहीं बल्कि तीन से चार हज़ार रूपये का . हम तो इस कार्यक्रम को बस दो चार मिनट के लिए एक हास्य कार्यक्रम के रूप में देखते हैं .

उनसे हमारा संवाद कुछ यूं हुआ-
  1. इलाज के नाम पर गर्म होता हवसख़ोरी का बाज़ार
    चमत्कार न होते तो डाक्टर को मौत न आती।

    ऐसा देखा जा सकता है कि बहुत बार हायजीनिक कंडीशन में रहने वाले डाक्टर बूढ़े हुए बिना मर जाते हैं जबकि कूड़े के ढेर पर 80 साल के बूढ़े देखे जा सकते हैं।
    मिटटी पानी और हवा में ज़हर है लेकिन लोग फिर भी ज़िंदा हैं।
    क्या यह चमत्कार नहीं है ?

    लोग दवा से भी ठीक होते हैं और प्लेसिबो से भी।

    भारत चमत्कारों का देश है और यहां सेहत के मामले में भी चमत्कार होते हैं।
    हिप्नॉटिज़्म को कभी चमत्कार समझा जाता था लेकिन आज इसे भी इलाज का एक ज़रिया माना जाता है।
    जो कभी चमत्कार की श्रेणी में आते थे, उन तरीक़ों को अब मान्यता दी जा रही है।
    एक्यूपंक्चर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अगर मान्यता दी जा रही है तो सिर्फ़ उसके चमत्कारिक प्रभाव के कारण।
    होम्योपैथी भी एक ऐसी ही पैथी है।
    वैज्ञानिक आधार पर खरी ऐलोपैथी से इलाज कराने वालों से ज़्यादा लोग वे हैं जो कि उसके अलावा तरीक़ों से इलाज कराते हैं।
    पूंजीपति वैज्ञानिकों से रिसर्च कराते हैं और फिर उनकी खोज का पेमेंट करके महंगे दाम पर दवाएं बेचते हैं।
    वैज्ञानिक सोच के साथ जीने का मतलब है मोटा माल कमाने और ख़र्च करने की क्षमता रखना।
    भारत के अधिकांश लोग 20-50 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं। सो वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक संस्थान व आधुनिक अस्पताल उनके लिए नहीं हैं। इनकी दादी और उसके नुस्ख़े ही इनके काम आते हैं।
    यही लोग वैकल्पिक पद्धतियां आज़माते हैं, जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता।
    बीमारियां केवल दैहिक ही नहीं होतीं बल्कि मनोदैहिक होती हैं।

    ...और मन एक जटिल चीज़ है।
    मरीज़ को विश्वास हो जाए कि वह ठीक हो जाएगा तो बहुत बार वह ठीक हो जाता है।
    मरीज़ को किस आदमी या किस जगह या किस बात से अपने ठीक होने का विश्वास जाग सकता है, यह कहना मुश्किल है।
    यही वजह है कि केवल अनपढ़ व ग़रीब आदमी ही नहीं बल्कि शिक्षित व धनपति लोग भी सेहत के लिए दुआ, तावीज़, तंत्र-मंत्र करते हुए देखे जा सकते हैं।
    आधुनिक नर्सिंग होम्स के गेट पर ही देवी देवताओं के मंदिर देखे जा सकते हैं। मरीज़ देखने से पहले डाक्टर साहब पहले वहां हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि उनके मरीज़ों को आरोग्य मिले।

    आपकी पोस्ट अच्छी है लेकिन चिकित्सा के पेशे को जिस तरह सेवा से पहले व्यवसाय और अब ठगी तक में बदल दिया गया है, उसी ने जनता को नीम हकीमों के द्वार पर धकेला है।
    Please see
    http://commentsgarden.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
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    1. अनवर जी , समय निकालने के लिए शुक्रिया ।
      जीवन के बारे में कोई नहीं बता सकता । किसे पता था कि शास्त्री जी वार जीतने के बाद विदेश में बिना कारण स्वर्ग सिधार जायेंगे ।
      प्लेसिबो से कोई ठीक नहीं होता । यह बस एक भ्रम है । असल में कुछ रोग होते ही ऐसे हैं जो बिना इलाज भी ठीक हो जाते हैं जैसे वाइरल फीवर । १- ७ दिन में बुखार उतरना लगभग निश्चित है । लेकिन कोई डॉक्टर यह नहीं बता सकता कि एक दिन में उतरेगा या ७ दिन में । आप ६ दिन तक एक डॉक्टर की दवा लेकर , हारकर सातवें दिन दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं और बुखार उतर जाता है । नया डॉक्टर तो हो गया आपके लिए भगवान ।
      बेशक आजकल इलाज बहुत महंगा हो गया है । लेकिन सरकारी अस्पतालों में अभी भी मुफ्त होता है और अच्छा इलाज होता है ।
      हमारी अधिकांश आबादी अभी भी उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है । इसीलिए आर्थिक विकास में हम इथिओपिया से भी नीचे हैं ।
      सुशिक्षित लोग भी तंत्र मन्त्र के चक्कर में पड़ते हैं , यह देखकर सिवाय दुःख प्रकट करने के और कुछ नहीं कर सकते ।
      देवी देवताओं के दर्शन मन को सकूं पहुंचाते हैं क्योंकि आखिर डॉक्टर भी भगवान नहीं होता ।
      अभी वह दिन दूर है जब हम मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेंगे ।
      आपने दिए गए उदाहरणों पर प्रकाश नहीं डाला !
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    2. भारतीय संस्कृति में दादी मां की आवश्यकता क्यों ?

      दराल जी,
      टिप्पणी पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया !
      1. आपने लालबहादुर शास्त्री जी के स्वर्ग सिधारने की बात कही है। आप स्वर्ग नर्क को मानते हैं लेकिन बहुत लोग स्वर्ग नर्क की मान्यता को अंधविश्वास और कल्पना मात्र मानते हैं और अपनी नास्तिक सोच को वैज्ञानिक बताते हैं।
      जब दो विचार टकराएं तो किस विचार को वैज्ञानिक माना जाए ?, इसके लिए हमारे पास कोई पैमाना होना चाहिए।
      ...और यह भी कि सिधारने वाला स्वर्ग ही सिधारा है या कहीं और ?
      वर्ना केवल दिवंगत आदि कहना चाहिए।

      2. सरकारी अस्पताल देश की सवा अरब की आबादी के कितने प्रतिशत लोगों को सेवा दे पाते हैं ?

      3. अपने रूतबे से हटकर आप किसी गांव-क़स्बे के सरकारी अस्पताल में किसी रोगी को इलाज के लिए लेकर तो जाएं, आपका तजर्बा आपको बताएगा कि सरकारी अस्पतालों के इलाज कितने अच्छे हैं ?

      4. विज्ञान ने तरक्क़ी की तो उपचार ने भी तरक्क़ी की। उपचार महंगा हुआ तो चिकित्सक बनने के लिए केवल योग्यता ही काफ़ी न रही, मोटा इन्वेस्टमेंट भी एक आवश्यक शर्त बन गया। मोटे इन्वेस्टमेंट के बाद मोटा मुनाफ़ा भी लाज़िमी हुआ। अब डाक्टर सेवक कम और व्यापारी ज़्यादा हो गया।

      5. कमीशन के लिए ग़ैर ज़रूरी टेस्ट और दवाएं लिखने वाला डाक्टर तो ठग ही हुआ। अब डाक्टर के रूप में व्यापारी और ठग ज़्यादा हैं और सेवक कम। वैज्ञानिक तरीक़े से इलाज कराने वालों की एफ़.डी. टूटते और ज़मीन बिकते हुए देखी जा सकती है। डाक्टर अमीर और अमीर होते चले जा रहे हैं और मरीज़ कंगाल। इधर का माल उधर जा रहा है और यह सब इलाज के नाम पर हो रहा है।

      6. कन्या भ्रूण हत्या करने वाले सुपारी किलर डाक्टर भी वैज्ञानिक सोच वाले होते हैं। इनमें से किसी के भी विरूद्ध कोई प्रभावी कार्यवाही कभी हुई हो, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।

      7. तनख्वाह और सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए डाक्टर सामूहिक हड़ताल पर चले जाते हैं और इस दरम्यान सैकड़ों लोग मर जाते हैं। तब चंबल के हत्यारे डाकुओं और इन हत्यारे डाक्टरों में कोई अंतर शेष नहीं रहता।

      8. गांव और ग़रीबों के बीच ये डाक्टर जाते नहीं हैं। गांव के लाचार बीमारों के पास उनकी ‘दादी मां‘ ही शेष रहती है। उनका इलाज ‘दादी मां‘ की मजबूरी है, उसका शौक़ नहीं है।

      9. इलाज हरेक नागरिक का बुनियादी हक़ है। इसके लिए उसके पास काफ़ी रूपया हो, यह हरगिज़ ज़रूरी नहीं होना चाहिए।

      10. गर्भधारण, प्रसव और शिशु पालन के विषय में गांव की बहुओं की जितनी मदद इन ‘दादी मांओं‘ ने की है। उसकी कोई तुलना किसी सरकारी ‘आशा‘ या किसी एनजीओ से नहीं की जा सकती।
      मां का स्पर्श ही शिशु के लिए दर्द निवारक है। यह एक चमत्कार भी है और एक वैज्ञानिक तथ्य भी। मां के रूप में एक चिकित्सक सदा ही शिशु के साथ रहता है। यह ईश्वर का एक वरदान है। उसका दूध शिशु के लिए अमृत है। यह भी एक वैज्ञानिक तथ्य है। टीवी आदि के ज़रिये ज़रूरी विषयों की जानकारी घर घर आम की जाए तो मां की कार्यकुशला को बढ़ाया जा सकता है।

      11. आपने कहा है कि
      ‘हमारी अधिकांश आबादी अभी भी उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। इसीलिए आर्थिक विकास में हम इथिओपिया से नीचे हैं।‘
      यह बात ठीक उल्टे रूप में कही जानी चाहिए कि
      ‘हमारे यहां टैक्स चोरी और रिश्वतख़ोरी का स्तर इथिओपिया से अधिक है। इसीलिए हमारी अधिकांश आबादी उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है।‘
      टैक्स चोरी में वैज्ञानिक सोच वाले डाक्टर किसी से पीछे नहीं हैं।

      12. आप देवी देवताओं के दर्शन को शान्तिदायक मानते हैं लेकिन तंत्र-मंत्र का सफ़ाया चाहते हैं। जबकि तंत्र-मंत्र देवी देवताओं से ही जुड़े हुए हैं। जब तक देवी देवताओं में आस्था रहेगी तब तक लोगों की आस्था तंत्र-मंत्र में भी बनी रहेगी। देवी देवताओं में आस्था रखते हुए भी लोग तंत्र-मंत्र से दूर कैसे रहें ?, इसका कोई उपाय हो तो उदाहरण सहित अवश्य प्रकाश डालें।

      नोट- यह टिप्पणी केवल तथ्य केंद्रित है। कोई विशेष पद्धति अथवा कोई व्यक्ति विशेष इसका विषय नहीं है।
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    3. डॉ अनवर ज़माल जी , आपने जो तथ्य प्रस्तुत कियें हैं , वे सत्य हैं । इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता । बेशक , भ्रष्टाचार का प्रभाव चिकित्सा क्षेत्र में भी पड़ा है । हालाँकि सबको एक डंडे से नहीं हांका जा सकता ।
      लेकिन यहाँ चिकित्सा को गाँव गाँव तक पहुँचाने की ज़रुरत है । इसके लिए सरकार को प्रयत्न करना पड़ेगा । अपने आप कोई नहीं जाना चाहता , आराम की जिंदगी छोड़कर । वैसे भी डॉक्टर्स भी इन्सान होते हैं जिनकी अपनी ज़रूरतें होती हैं । मरीजों का नीम हकीम के पास जाना एक मज़बूरी हो सकती है लेकिन इसे सही नहीं ठहराया जा सकता ।
      देवी देवताओं का तंत्र मन्त्र से कोई सम्बन्ध नहीं है । धार्मिक विश्वास और अंध विश्वास में फर्क होता है ।

      हमारा एक और कमेंट भी इसी पोस्ट पर है-
      Delete
      @ डा. श्याम कुमार गुप्ता जी ! एक्यूपंक्चर में शरीर में ऊर्जा के प्रवाह के लिए जो मेरीडियंस मानी जाती हैं। वे किसी भी चीरफाड़ में नहीं देखी जा सकी हैं।
      इसी तरह होम्योपैथी में 12 शक्ति से ज़्यादा शक्ति वाली दवा को लैब में टेस्ट किया जाता है तो उसमें किसी दवा का अंश नहीं मिलता।
      एक्यूपंक्चर की ऊर्जा ‘ची‘ और होम्योपैथी की दवा का उच्चीकृत अंश, दोनों ही सूक्ष्म हैं। इसीलिए ये दोनों ही असरकारी नतीजे देने के बावजूद विज्ञान की पकड़ से बाहर हैं।

      हर चीज़ को विज्ञान पकड़ ले, यह संभव नहीं है और न ही विज्ञान इसका दावा करता है।
      विज्ञान का दायरा सीमित है और सत्य इसके दायरे से बड़ा है।
      अतः सत्य विज्ञान के दायरे में भी है और इसके बाहर भी।

      जो कुछ विज्ञान के दायरे के बाहर है, वह असत्य और मिथ्या है, यह सोचना ठीक नहीं है।

4 comments:

रविकर said...

बढ़िया विश्लेषण ||

Rajesh Kumari said...

आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १५ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |

कुमार राधारमण said...

गंभीर चर्चा हुई है जिसका दायरा स्वास्थ्य से कहीं अधिक व्यापक होकर हमारी समग्र सोच को प्रतिबिंबित कर रहा है। ऐसी चर्चाएं ही ब्लॉगिंग की जान हैं और ऐसी चर्चाओं से ही ब्लॉग जगत वैकल्पिक मीडिया बनने की सोच सकता है।

DR. ANWER JAMAL said...

आप तीनों ब्लॉगर्स का शुक्रिया !

‘ब्लॉग की ख़बरें‘

1- क्या है ब्लॉगर्स मीट वीकली ?
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_3391.html

2- किसने की हैं कौन करेगा उनसे मोहब्बत हम से ज़्यादा ?
http://mushayera.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html

3- क्या है प्यार का आवश्यक उपकरण ?
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_18.html

4- एक दूसरे के अपराध क्षमा करो
http://biblesmysteries.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

5- इंसान का परिचय Introduction
http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/07/introduction.html

6- दर्शनों की रचना से पूर्व मूल धर्म
http://kuranved.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

7- क्या भारतीय नारी भी नहीं भटक गई है ?
http://lucknowbloggersassociation.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html

8- बेवफा छोड़ के जाता है चला जा
http://kunwarkusumesh.blogspot.com/2011/07/blog-post_11.html#comments

9- इस्लाम और पर्यावरण: एक झलक
http://www.hamarianjuman.com/2011/07/blog-post.html

10- दुआ की ताक़त The spiritual power
http://ruhani-amaliyat.blogspot.com/2011/01/spiritual-power.html

11- रमेश कुमार जैन ने ‘सिरफिरा‘ दिया
http://blogkikhabren.blogspot.com/2011/07/blog-post_17.html

12- शकुन्तला प्रेस कार्यालय के बाहर लगा एक फ्लेक्स बोर्ड-4
http://shakuntalapress.blogspot.com/

13- वाह री, भारत सरकार, क्या खूब कहा
http://bhadas.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html

14- वैश्विक हुआ फिरंगी संस्कृति का रोग ! (HIV Test ...)
http://sb.samwaad.com/2011/07/blog-post_16.html

15- अमीर मंदिर गरीब देश
http://hbfint.blogspot.com/2011/07/blog-post_18.html

16- मोबाइल : प्यार का आवश्यक उपकरण Mobile
http://hbfint.blogspot.com/2011/07/mobile.html

17- आपकी तस्वीर कहीं पॉर्न वेबसाइट पे तो नहीं है?
http://bezaban.blogspot.com/2011/07/blog-post_18.html

18- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम अब तक लागू नहीं
http://hbfint.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html

19- दुनिया में सबसे ज्यादा शादियाँ करने वाला कौन है?
इसका श्रेय भारत के ज़ियोना चाना को जाता है। मिजोरम के निवासी 64 वर्षीय जियोना चाना का परिवार 180 सदस्यों का है। उन्होंने 39 शादियाँ की हैं। इनके 94 बच्चे हैं, 14 पुत्रवधुएं और 33 नाती हैं। जियोना के पिता ने 50 शादियाँ की थीं। उसके घर में 100 से ज्यादा कमरे है और हर रोज भोजन में 30 मुर्गियाँ खर्च होती हैं।
http://gyaankosh.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

20 - ब्लॉगर्स मीट अब ब्लॉग पर आयोजित हुआ करेगी और वह भी वीकली Bloggers' Meet Weekly
http://hbfint.blogspot.com/2011/07/bloggers-meet-weekly.html

21- इस से पहले कि बेवफा हो जाएँ
http://www.sahityapremisangh.com/2011/07/blog-post_3678.html

22- इसलाम में आर्थिक व्यवस्था के मार्गदर्शक सिद्धांत
http://islamdharma.blogspot.com/2012/07/islamic-economics.html

23- मेरी बिटिया सदफ स्कूल क्लास प्रतिनिधि का चुनाव जीती
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30-
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