बचपन से मैंने यही पढ़ा, सुना और जाना था कि संपत्ति के दो रूप होते हैं-चल और अचल. लेकिन पिछले मंगलवार को मुझे इसके तीसरे रूप कि जानकारी मिली जिसके नामकरण और परिभाषा पर मैं विचार कर रहा हूं. हुआ यूं कि मैं धनबाद से बोकारो होते हुए रांची लौट रहा था कि चन्द्रपुरा के एक पत्रकार मित्र आरएस शर्मा से मिलने कि इच्छा हो गई जिनके दोनों गुर्दे ख़राब हो चुके हैं और फिलहाल डायलिसिस पर चल रहे हैं. इसी बहाने बेरमो कोयलांचल के मित्रों से भी मुलाकात कर लेनी थी सो फुसरो की बस में स्वर हो गया. डेढ़ घंटे की यात्रा के बाद फुसरो पहुंचा. प्रभात खबर के ब्यूरो चीफ राकेश वर्मा से मिला तो उन्होंने मनोज कुमार सिंह नामक अपने एक सहयोगी को बाइक पर मुझे चन्द्रपुरा पहुंचाने का निर्देश दिया और अगले दिन वापस लौटने के बाद बेरमो के मित्रों के साथ मिलना तय हुआ.
कोयलांचल की सड़कों पर बाइक पर चलने का रोमांच कुछ अलग ही होता है. पतली सड़क पर जगह-जगह कंक्रीट उखड जाने से गड्ढे और गड्ढों में बरसात का पानी. उसपर कोयला लदे ट्रकों की तेज़ी से आवाजाही.
चन्द्रपुरा का चेहरा कुछ बदला हुआ लगा. यहां थर्मल प्लांट की नई यूनिट लगने के बाद पहली बार आया था. इसकी चिमनी सड़क से बिलकुल सटी हुई बनी है.
शाम के करीब पांच बजे शर्मा जी के घर पर पहुंचा. शर्मा जी अचानक मुझे देखकर आनंदित हुए. उन्होंने नया घर बनवा लिया था. अच्छा लगा. पहले से काफी दुबले हो गए थे लेकिन हाव-भाव और गर्मजोशी पहले जैसी ही थी. मनोज शर्मा जी से मिलकर वापस लौट गया. उनकी सेहत और इलाज के संबंध में बातें होने लगीं. भाभी जी भी पास ही बैठी हमारी बातें सुन रही थीं.
थोड़ी देर बाद बातचीत के क्रम में मैंने उनके छोटे भाई अरविंद के बारे में पूछा तो शर्मा जी थोडा गंभीर हो गए. अरविन्द बगल में ही घर बनाकर रहते हैं. शर्मा जी ने इतना ही कहा कि आप चाहें तो उससे मिल लें लेकिन वो यहां नहीं आएगा.
इसी बीच हिंदुस्तान के रिपोर्टर प्रमोद सिन्हा स्कूटर पर पहुंचे. मैंने उनसे कहा कि नीमिया मोड़ तरफ चलें शायद कुछ पुराने मित्रों से मुलाकात हो जाये. चाय नाश्ते के बाद हम स्कूटर से चले रस्ते में मैंने प्रमोद से पूछा कि शर्मा जी और अरविंद के बीच कुछ खटपट चल रही है क्या. प्रमोद ने जवाब दिया-खटपट..! उनके बीच केस-मुकदमा चल रहा है. उसने शर्मा जी के पीएफ और ग्रेच्युटी में अपनी हिस्सेदारी का दावा ठोककर उसपर रोक लगाने और उनकी जगह उनके बेटे कि नौकरी में भी अड़चन दाल दी है.
दरअसल शर्मा जी बोकारो इस्पात संयंत्र में कार्यरत थे. उनके परिवार की ज़मीन संयंत्र के लिए अधिगृहित की गयी थी जिसके एवज में मुआवजे के अलावा दो नौकरियां मिली थीं. शर्मा जी के बड़े भाई व्यवसायी थे इसलिए उन्होंने नौकरी नहीं ली. उनके चार भाइयों में दुसरे नंबर वाले ने एक नौकरी ली और तीसरे नंबर पर शुमार शर्मा जी ने ली. अरविंद उम्र में काफी छोटा था.
अब जब कि शर्मा जी अस्वस्थता के आधार पर सेवानिवृति ले चुके हैं. नियमानुसार उनकी जगह उनके एक बेटे की नौकरी हो सकती है. प्रबंधन इसके लिए राजी भी है. अरविंद का तर्क यह है कि चूकि यह नौकरी पुश्तैनी ज़मीन के एवज़ में मिली थी इसलिए इसपर और सेवा निवृति के लाभों पर उनका हक बनता है. इसी आधार पर उन्होंने अपना दावा ठोका है और फिलहाल मौत के मुहाने पर खड़े अपने बड़े भाई को कटघरे में खड़ा कर दिया है. उनके दावे पर कोर्ट का या बीएसएल प्रबंधन का क्या रुख होगा यह मेरी सोच का विषय नहीं है मेरी सोच का विषय यह है कि क्या ऐसे संस्थानों में जहां अनुकम्पा के आधार पर आश्रित को नौकरी देने का प्रावधान है वहां नौकरी भी पैतृक संपत्ति का एक रूप बन गयी है और उसके लाभ के विभाजन की मांग हो सकती है. यदि हां तो इसे चल संपत्ति मानेंगे या अचल?
----देवेंद्र गौतम
fact n figure: एक संपत्ति जो न चल है न अचल:
'via Blog this'
ससुराल पक्ष के लोगों को मनाने के बाद हुआ सासू मां का नेत्रदान
-
ससुराल पक्ष के लोगों को मनाने के बाद हुआ सासू मां का नेत्रदान
2. ज्योतिमित्र सत्यनारायण के प्रयास से सासू माँ का नैत्रदान सम्पन्न
रविवार सुबह चित्रगु...
0 comments:
Post a Comment