हिंदी ब्लॉगिंग का एक साल और गुज़र गया लेकिन फिर भी 10 साल पूरे नहीं हुए। इसके बावजूद हिंदी ब्लॉगिंग के 10 वर्षीय उत्सव मना डाले गए। हिंदी ब्लॉगिंग की इस प्री-मेच्योर डिलीवरी या भ्रूण हत्या को पूरे ब्लॉग जगत ने देखा और सराहा। संवेदनशील काव्यकारों और बुद्धिकारों ने इसमें सक्रिय सहयोग दिया और बदले में सम्मान आदि पाया। इसमें जो ख़र्च आया, उसे भी सहर्ष स्वीकार किया गया और यह परंपरा आगे भी जारी रहे, इसके लिए वे प्रयासरत हैं। इस तरह नाम और शोहरत के ग्राहकों और सप्लायरों ने हिंदी ब्लॉगिंग का व्यापारीकरण कर दिया। यह एक दुखद घटना है और इससे भी ज़्यादा दुखद यह है कि सब कुछ जानते हुए भी लोग बाग डरे हुए हैं और टुकुर टुकुर चुपचाप देख रहे हैं। किसी को आगे सम्मान की इच्छा है और किसी को यह इच्छा है कि उसकी पोस्ट पर टिप्पणियां देने वाले बने रहें। इन्हीं में वे लोग हैं जो सम्मान की ख़रीद फ़रोख्त करते हैं।
हिंदी ब्लॉगिंग को नुक्सान पहुंचाने वाली दूसरी वजह गुटबाज़ी और सांप्रदायिक मानसिकता है। किसी विशेष विचारधारा वाले ब्लॉगर का हौसला पस्त करने के लिए हरसंभव तरीक़े इस्तेमाल किए गए और नतीजा कई प्रतिभाशाली ब्लॉगर के पलायन के रूप में सामने आया।
इन दो मूल कारणों से कई विकार सामने आए। मस्लन मठाधीश बनने की कोशिश की गई और इस चक्कर में मठाधीश ही आपस में टकरा कर अपना सिर फोड़ते रहे। डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और कवि आदि सभी ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
इस चक्कर में वे ब्लॉगर पिस कर रह गए जो कि अच्छा लिखने आए थे और उन्होंने लिखा भी, लेकिन न तो वे किसी को गॉड फ़ादर बना पाए और न ही कमेंट बटोरने की कला में माहिर हो सके। इनसे बेनियाज़ (निरपेक्ष) भी वह न हो पाए क्योंकि अपनी कला का प्रदर्शन और सराहना एक साहित्यकार का पहला मक़सद होता है।
इसीलिए बहुत से हिंदी ब्लॉगर मैदान छोड़कर भाग गए। कोई चुपचाप निकल गया और ऐलान करके बता कर गया। जो भाग नहीं सकते या भाग नहीं पाए, वे अब भी जमे हुए हैं लेकिन लिखना उन्होंने भी पहले से कम कर दिया है।
कुछ नए ब्लॉगर भी मैदान में आए हैं, आते रहेंगे और जाते भी रहेंगे क्योंकि हिंदी ब्लॉगिंग से मोह भंग करने के कारण बदस्तूर मौजूद हैं और दूसरों के साथ हम इन घटनाओं के साक्षी हैं। फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि वे डरे हुए हैं और चुप हैं जबकि हम बेख़ौफ़ और बेबाक़ हैं।
हम बचाते ही रहे दीमक से अपना घर
चंद कीड़े कुर्सियों के मुल्क सारा खा गए
अल्लाह हमारा हामी व नासिर हो,
आमीन !!!
हिंदी ब्लॉगिंग को नुक्सान पहुंचाने वाली दूसरी वजह गुटबाज़ी और सांप्रदायिक मानसिकता है। किसी विशेष विचारधारा वाले ब्लॉगर का हौसला पस्त करने के लिए हरसंभव तरीक़े इस्तेमाल किए गए और नतीजा कई प्रतिभाशाली ब्लॉगर के पलायन के रूप में सामने आया।
इन दो मूल कारणों से कई विकार सामने आए। मस्लन मठाधीश बनने की कोशिश की गई और इस चक्कर में मठाधीश ही आपस में टकरा कर अपना सिर फोड़ते रहे। डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक और कवि आदि सभी ने इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया।
इस चक्कर में वे ब्लॉगर पिस कर रह गए जो कि अच्छा लिखने आए थे और उन्होंने लिखा भी, लेकिन न तो वे किसी को गॉड फ़ादर बना पाए और न ही कमेंट बटोरने की कला में माहिर हो सके। इनसे बेनियाज़ (निरपेक्ष) भी वह न हो पाए क्योंकि अपनी कला का प्रदर्शन और सराहना एक साहित्यकार का पहला मक़सद होता है।
इसीलिए बहुत से हिंदी ब्लॉगर मैदान छोड़कर भाग गए। कोई चुपचाप निकल गया और ऐलान करके बता कर गया। जो भाग नहीं सकते या भाग नहीं पाए, वे अब भी जमे हुए हैं लेकिन लिखना उन्होंने भी पहले से कम कर दिया है।
कुछ नए ब्लॉगर भी मैदान में आए हैं, आते रहेंगे और जाते भी रहेंगे क्योंकि हिंदी ब्लॉगिंग से मोह भंग करने के कारण बदस्तूर मौजूद हैं और दूसरों के साथ हम इन घटनाओं के साक्षी हैं। फ़र्क़ सिर्फ़ यह है कि वे डरे हुए हैं और चुप हैं जबकि हम बेख़ौफ़ और बेबाक़ हैं।
हम बचाते ही रहे दीमक से अपना घर
चंद कीड़े कुर्सियों के मुल्क सारा खा गए
अल्लाह हमारा हामी व नासिर हो,
आमीन !!!
नया साल 2013 ब्लॉगर्स और ग़ैर-ब्लॉगर्स सबको मुबारक हो !
आपने एक सार्थक पोस्ट लिखी इसके लिए शुभकामनाएं...