हम यह देख-सुन रहे हैं कि औसत आयु बढ़ रही है, स्वास्थ्य और पोषण के बारे में जानकारी भी बढ़ रही है, पर यह भी सच है कि आजकल के बच्चे अपने माता-पिता की तुलना में कम फिट हैं। दुनिया के 28 देशों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद विशेषज्ञ इस नतीजे पर पहुंचे हैं। पिछले 50 वर्षों में ढाई करोड़ लोगों के फिटनेस-आंकड़ों की तुलना करने के बाद विशेषज्ञों का कहना है कि हर साल बच्चों में फिटनेस का स्तर पांच प्रतिशत गिर रहा है। एक मोटे अनुमान से आजकल के बच्चे एक मील दौड़ने में जितना वक्त लगाते हैं, उनके माता-पिता अपने बचपन में उससे औसतन 90 सेकंड कम वक्त में एक मील दौड़ लेते थे, यानी अंदाजन बच्चों की रफ्तार में प्रति किलोमीटर एक मिनट बढ़ गया है। अध्ययन करने वाले लोगों का कहना है कि इसकी मुख्य वजह बच्चों में बढ़ता मोटापा है। ज्यादा खाना, फास्ट फूड का चलन और व्यायाम की कमी इस बात के लिए जिम्मेदार हैं। बचपन में फिटनेस की कमी वयस्क होने पर जीवनशैली की बीमारियां पैदा होने का खतरा बढ़ा देती है।
दुनिया भर में फास्ट फूड के खिलाफ काफी जोरदार अभियान छिड़ा है, लेकिन उसका आकर्षण कम नहीं हो रहा। फास्ट फूड जितना चटपटा और स्वादिष्ट होता है, वह उतना पौष्टिक आहार नहीं हो सकता। उसका स्वादिष्ट होना ही सेहत के लिए उसके ठीक न होने का कारण है, क्योंकि उसे चटपटा बनाने के लिए उसमें नमक, चीनी और फैट जरूरत से ज्यादा मात्र में इस्तेमाल किए जाते हैं। इससे भी बड़ी समस्या व्यायाम की कमी है। जानकार बताते हैं कि व्यायाम का अर्थ जिम जाना या स्कूल की किसी खेल टीम का हिस्सा होना नहीं है। उनका कहना है कि इस तरह के व्यायाम के मुकाबले बच्चे दौड़-भाग करें, खुले में खेलें और ज्यादा देर बैठे न रहें, तो बचपन के मोटापे से और फिटनेस की कमी से मुकाबला किया जा सकता है। एक तथ्य यह है कि इंसान की औसत लंबाई बढ़ रही है। उन्नीसवीं शताब्दी के मुकाबले इंसान की औसत लंबाई अब लगभग छह इंच ज्यादा है।
उन्नीसवीं शताब्दी में साढ़े पांच फीट की लंबाई अच्छी-खासी मानी जाती थी। लंबाई के साथ औसत वजन भी बढ़ा है और खासकर बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के बाद दुनिया के कई हिस्सों में समृद्धि के बढ़ने व फास्ट फूड उद्योग के पनपने की वजह से मोटापा बढ़ा है। इन सब वजहों से भी फिटनेस पर असर हुआ है। परिवहन के साधनों की वजह से चलना और दौड़ना कम हो गया है। टेक्नोलॉजी ने वजन उठाने की जरूरत कम कर दी है। इसीलिए मध्ययुग के साढ़े पांच फीट के लोग जिन हथियारों से लड़ सकते थे, उनमें से कई आज के साढ़े छह फीट के हट्टे-कट्टे लोग उठा नहीं पाते। इनमें से कुछ बातों का तो कोई उपाय नहीं है, पर बच्चों को घर में टीवी व वीडियो गेम से हटाकर खुले में खेलने भेजना तो मुमकिन है।
पुराने जमाने के लोगों में फिटनेस का स्तर बेहतर था, लेकिन चिकित्सा सुविधाएं न होने से औसत उम्र कम थी। अब अगर कोई व्यक्ति अपनी दो-तिहाई उम्र किसी लंबी बीमारी के साये में परहेज करते हुए और दवाएं खाते गुजारे, तो यह कितना कष्टप्रद होगा। आधुनिक विज्ञान ने बीमारियों के इलाज तो ढूंढ़े हैं, किंतु फिटनेस के तरीके वही पुराने हैं। अब खुली जगह भी कम है, सड़कें भी सुरक्षित नहीं, इसलिए बच्चों के खेलने और दौड़ने के लिए खुली जगहें छोड़ना शहरी नियोजन में अनिवार्य किया जाना चाहिए। साथ ही स्कूलों के लिए बच्चों की फिटनेस पर ध्यान देना जरूरी किया जाना चाहिए। बच्चा जिंदगी की राह पर तंदुरुस्ती के साथ चल सके, इसलिए बचपन में उसे दौड़ने-कूदने के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है।
Source:
हिंदुस्तान २५ नवंबर २०१३ , संपादकीय पेज से साभार
इस खबर की अहमियत को देखते हुए पूरा लेख पब्लिश किया जा रहा है बजाय सिर्फ़ के। अपने बच्चों को लीजिये।
दुनिया भर में फास्ट फूड के खिलाफ काफी जोरदार अभियान छिड़ा है, लेकिन उसका आकर्षण कम नहीं हो रहा। फास्ट फूड जितना चटपटा और स्वादिष्ट होता है, वह उतना पौष्टिक आहार नहीं हो सकता। उसका स्वादिष्ट होना ही सेहत के लिए उसके ठीक न होने का कारण है, क्योंकि उसे चटपटा बनाने के लिए उसमें नमक, चीनी और फैट जरूरत से ज्यादा मात्र में इस्तेमाल किए जाते हैं। इससे भी बड़ी समस्या व्यायाम की कमी है। जानकार बताते हैं कि व्यायाम का अर्थ जिम जाना या स्कूल की किसी खेल टीम का हिस्सा होना नहीं है। उनका कहना है कि इस तरह के व्यायाम के मुकाबले बच्चे दौड़-भाग करें, खुले में खेलें और ज्यादा देर बैठे न रहें, तो बचपन के मोटापे से और फिटनेस की कमी से मुकाबला किया जा सकता है। एक तथ्य यह है कि इंसान की औसत लंबाई बढ़ रही है। उन्नीसवीं शताब्दी के मुकाबले इंसान की औसत लंबाई अब लगभग छह इंच ज्यादा है।
उन्नीसवीं शताब्दी में साढ़े पांच फीट की लंबाई अच्छी-खासी मानी जाती थी। लंबाई के साथ औसत वजन भी बढ़ा है और खासकर बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध के बाद दुनिया के कई हिस्सों में समृद्धि के बढ़ने व फास्ट फूड उद्योग के पनपने की वजह से मोटापा बढ़ा है। इन सब वजहों से भी फिटनेस पर असर हुआ है। परिवहन के साधनों की वजह से चलना और दौड़ना कम हो गया है। टेक्नोलॉजी ने वजन उठाने की जरूरत कम कर दी है। इसीलिए मध्ययुग के साढ़े पांच फीट के लोग जिन हथियारों से लड़ सकते थे, उनमें से कई आज के साढ़े छह फीट के हट्टे-कट्टे लोग उठा नहीं पाते। इनमें से कुछ बातों का तो कोई उपाय नहीं है, पर बच्चों को घर में टीवी व वीडियो गेम से हटाकर खुले में खेलने भेजना तो मुमकिन है।
पुराने जमाने के लोगों में फिटनेस का स्तर बेहतर था, लेकिन चिकित्सा सुविधाएं न होने से औसत उम्र कम थी। अब अगर कोई व्यक्ति अपनी दो-तिहाई उम्र किसी लंबी बीमारी के साये में परहेज करते हुए और दवाएं खाते गुजारे, तो यह कितना कष्टप्रद होगा। आधुनिक विज्ञान ने बीमारियों के इलाज तो ढूंढ़े हैं, किंतु फिटनेस के तरीके वही पुराने हैं। अब खुली जगह भी कम है, सड़कें भी सुरक्षित नहीं, इसलिए बच्चों के खेलने और दौड़ने के लिए खुली जगहें छोड़ना शहरी नियोजन में अनिवार्य किया जाना चाहिए। साथ ही स्कूलों के लिए बच्चों की फिटनेस पर ध्यान देना जरूरी किया जाना चाहिए। बच्चा जिंदगी की राह पर तंदुरुस्ती के साथ चल सके, इसलिए बचपन में उसे दौड़ने-कूदने के लिए प्रोत्साहित करना जरूरी है।
Source:
हिंदुस्तान २५ नवंबर २०१३ , संपादकीय पेज से साभार
इस खबर की अहमियत को देखते हुए पूरा लेख पब्लिश किया जा रहा है बजाय सिर्फ़ के। अपने बच्चों को लीजिये।
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