आम तौर पर लोग यह शिकायत करते हैं कि सरकार हिंदी के प्रति उपेक्षा का भाव रखती है लेकिन जो लोग इस तरह की चिंताएं जताया करते हैं उनमें से अक्सर खुद हिंदी के प्रति उदासीन हैं। ऐसे लोगों की उदासीनता के चलते ही हिंदी की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग साइट 'ब्लॉग प्रहरी' को अब अंग्रेजी की ओर रूख करना पड रहा है।
समय समय पर कनिष्क कश्यप जी से हमारी बातें होती रही हैं और उनकी मेहनत और लगन देखकर हमेशा ही एक अहसास हुआ कि आखिर लोग एक रचनात्मक काम में भी उनका साथ क्यों नहीं दे रहे हैं ?
क्या सिर्फ इसलिए कि वे किसी गुट का हिस्सा नहीं हैं ?
समय समय पर कनिष्क कश्यप जी से हमारी बातें होती रही हैं और उनकी मेहनत और लगन देखकर हमेशा ही एक अहसास हुआ कि आखिर लोग एक रचनात्मक काम में भी उनका साथ क्यों नहीं दे रहे हैं ?
क्या सिर्फ इसलिए कि वे किसी गुट का हिस्सा नहीं हैं ?
इस गुटबंदी ने हिंदी ब्लॉगिंग का बेड़ा गर्क करके रख दिया है।
हरेक सकारात्मक काम इस गुटबंदी की भेंट चढ गया है लेकिन ये गुटबाज अपनी हरकतों से बाज नहीं आते और दुख की बात यह है कि ये बड़े ब्लॉगर भी कहलाते हैं।
2 comments:
gutbaaji vatavaran ko kharaab karti hai.
गुटबंदी क्वालिटी नहीं ला सकती. ब्लॉग प्रहरी को अंग्रेज़ी की ओर रुख़ करने से गुरेज़ नहीं करना चाहिए.
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