गायत्री मंत्र रहस्य भाग 2 The mystery of Gayatri Mantra 2
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गायत्री मंत्र रहस्य भाग 1 The mystery of Gayatri Mantra 1
गायत्री मंत्र के जिस अर्थ का हमें दर्शन हुआ है, उसके द्वारा व्याकरण के विद्वानों की आपत्तियां न्यूनतम स्तर पर पहुंच जाती हैं।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्. अर्थात हम परमेश्वर के सूर्य के उस वरणीय प्रकाश का ध्यान करें जो हमारी बुद्धियों को प्रेरित करे।
गायत्री मंत्र के व्याकरण पर आपत्ति उचित नहीं है
व्याकरण की दृष्टि से जो न्यूनतम आपत्तियां इस पर आ सकती हैं वे भी निर्मूल हो जाती हैं अगर यह बात सामने रखी जाए कि भाषा की उत्पत्ति और विकास पहले होता है और जब उसका विकास हो चुका होता है तब उसके व्याकरण के नियम निश्चित किए जाते हैं जो कि बाद वालों के एक सुविधा होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि जिन लोगों ने भाषा का विकास किया है वे अशुद्ध भाषा बोला करते थे। हम जिस भाषा को बचपन से बोलते हैं, उसे हम बहुत प्रकार से बोलते हैं। अगर कोई व्यक्ति दूसरी भाषा बोलने वाला आदमी व्याकरण पढ़कर हमारी भाषा में कमियां निकालने लगे तो यही माना जाएगा कि जितना ज्ञान उसे है, वह उसका काम चलाने के लिए पर्याप्त है लेकिन उतने ज्ञान के बल पर वह इसका अधिकारी हरगिज़ नहीं है कि भाषा के विविध रूपों को जानने वालों और उसे अपने दैनिक व्यवहार में लाने वालों की भाषा को वह अशुद्ध घोषित कर दे।
उदाहरण के तौर पर अल्लामा इक़बाल ने हिंदुस्तान की तारीफ़ करते हुए कहा है कि-
गायत्री मंत्र के व्याकरण पर आपत्ति उचित नहीं है
व्याकरण की दृष्टि से जो न्यूनतम आपत्तियां इस पर आ सकती हैं वे भी निर्मूल हो जाती हैं अगर यह बात सामने रखी जाए कि भाषा की उत्पत्ति और विकास पहले होता है और जब उसका विकास हो चुका होता है तब उसके व्याकरण के नियम निश्चित किए जाते हैं जो कि बाद वालों के एक सुविधा होती है। इसका मतलब यह नहीं है कि जिन लोगों ने भाषा का विकास किया है वे अशुद्ध भाषा बोला करते थे। हम जिस भाषा को बचपन से बोलते हैं, उसे हम बहुत प्रकार से बोलते हैं। अगर कोई व्यक्ति दूसरी भाषा बोलने वाला आदमी व्याकरण पढ़कर हमारी भाषा में कमियां निकालने लगे तो यही माना जाएगा कि जितना ज्ञान उसे है, वह उसका काम चलाने के लिए पर्याप्त है लेकिन उतने ज्ञान के बल पर वह इसका अधिकारी हरगिज़ नहीं है कि भाषा के विविध रूपों को जानने वालों और उसे अपने दैनिक व्यवहार में लाने वालों की भाषा को वह अशुद्ध घोषित कर दे।
उदाहरण के तौर पर अल्लामा इक़बाल ने हिंदुस्तान की तारीफ़ करते हुए कहा है कि-
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसितां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी ये गुलसितां हमारा
अल्लामा इक़बाल को उर्दू पर कितनी ज़्यादा पकड़ थी, यह हम सभी जानते हैं लेकिन कोई कह सकता है कि इस शेर में ‘गुलसितां‘ शब्द ग़लत है जबकि सही शब्द ‘गुलिस्तां‘ है। अगर यह बात मानकर यहां ‘गुलिस्तां‘ शब्द लिख दिया जाए तो यह शेर तुरंत बहर से ख़ारिज हो जाएगा और यह अपना वज़्न खो देगा। उर्दू के शब्दकोष में ‘गुलसितां‘ शब्द लिखा हुआ न मिलेगा लेकिन यह अपना वुजूद रखता है और जहां इसका इस्तेमाल हुआ है, वहां इसका बिल्कुल सही इस्तेमाल हुआ है और शब्दों का ऐसा इस्तेमाल सिर्फ़ वही लोग कर सकते हैं जिन्हें भाषा पर पूरी पकड़ होती है। यही लोग भाषा में नये प्रयोग करते हैं और इस तरह ये उसका विकास करते हैं। गायत्री मंत्र में भी जो शब्द जिस तरह प्रयुक्त हुआ है, वह उसी तरह सही है और अगर उसके साथ छेड़छाड़ की गई तो वह अपनी सुंदरता ही नहीं बल्कि अपना वास्तविक अर्थ ही खो देगा।
यह अन्वय और अर्थ की दृष्टि से बात हुई।
अब हम देखेंगे कि क्या गायत्री छंद में कोई छंदगत अशुद्धि वास्तव में ही मौजूद है या वहां भी कोई ऐसी ही बात है जिसे हम अपने पैमाने पर समझने की कोशिश रहे हैं जबकि हमें कोशिश यह करनी चाहिए कि उसे वेद मंत्रों की रचना करने वालों की दृष्टि से समझा जाए।
...जारी
http://vedquran.blogspot.in/2012/02/2-mystery-of-gayatri-mantra-2_28.html
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