कभी कभी जब हम अपनी बच्चों की माता मोहतरमा के साथ सफ़र करते हैं तो हम उन्हें बस ट्रेन और टेम्पो में आदमियों की तरह लदे हुए मर्द दिखाते हैं.
जी हाँ, बिलकुल आदमियों की तरह एक पर एक चढ़े हुए भी, खड़े हुए भी और पड़े हुए भी.
जानवरों को ऐसे कोई ट्रांसपोर्ट करे तो पशु क्रूरता अधिनियम में जेल जाए.
जानवरों से बदतर हालात में काम करके मर्द हँसता हुआ अपने घर में दाख़िल होता है. इस तरह वह अपनी ज़िल्लत पर पर्दा डालता है और अपनी कमाई अपने बच्चों की माँ को देता है.
औरत समझती है कि 'वाह ! मर्द बाहर से मौज मारकर लौट रहा है. क्यों न इस मौज का मज़ा मैं भी लूं ?'
मर्द उसे रोकता है कि मैं तो धक्के खा कर ज़लील हो ही रहा हूँ कम से कम यह तो घर में इज्ज़त से रहे.
मर्द रोकता है तो औरत का शौक़ और बढ़ जाता है कि नहीं अब तो हम भी बाहर के मज़े लेकर ही रहेंगे.
मर्द समझाए तो 'पुरुषवादी मानसिकता' का ताना खाए और चुप रहे तो अपनी बीवी, बहू और बेटियों को भी मर्दों के बीच दबा हुआ देखता रहे.
हम अपने बच्चों की माता मोहतरमा को यह सब दिखाते रहते हैं ताकि उन्हें पता रहे कि घर किसी सल्तनत से कम नहीं और नारी किसी रानी कम नहीं है.
इस सल्तनत का असल खज़ाना बच्चे हैं. माँ घर पर न रहे तो ये सलामत कैसे रहें ?
हरेक का अपना दायरा है . हरेक की अपनी ख़ूबियाँ है. जिसका काम उसी को साजै.
...अलबत्ता ज़ुल्म का खात्मा ज़रूर होना चाहिए.
उनका लिंक यह है-
...जो लोग पत्नियों को पैर की जूती समझते है या परिवार की नारी की अहमियत नहीं समझते उन्हें शिक्षित, जागरूक कर नारी के महत्व के बारे में समझाने की जरुरत है| क्योंकि दोनों एक दुसरे के पूरक है, एक दुसरे के बिना अधूरे है, नारी का अपमान पुरुष का अपमान है फिर चाहे अपमान कोई बाहरी व्यक्ति करे या घर का कोई व्यक्ति करें| जरुरत नर और नारी को एक दुसरे से नीचा दिखाने की नहीं, दोनों के बीच आपसी समझदारी वाले तालमेल की जरुरत है, इसी तालमेल से वैवाहिक जीवन सफल होता, परिवार सफल होते है और परिवार सफल व सुखी होंगे तो पूरा समाज और देश सुखी होगा|
1 comments:
सही लिखा आपने
पर आधुनिकता की आड़ में आजकल पता नहीं क्या क्या मांगे की जा रही है|
इन आधुनिकाओं की नजर में अपनी संस्कृति को अपनाये रखने वाले रुढ़िवादी है|
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