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चाय के ठेले पर विकास पुरूष
जिन किसानों की ज़मीनें विकास पुरूष ने बहकाकर पूंजीपतियों को लगभग मुफ़त ही नाम करवा दी थीं। ज़मीन खोकर खाने के लिए किसानों को पैसे की ज़रूरत पड़ी तो उन्हें पूंजीपतियों से भारी ब्याज पर क़र्ज़ लेना पड़ा। क़र्ज़ में दबकर किसी की पत्नी और किसी की बेटी को ब्याजख़ोर से दबना पड़ा और किसी को अपने गले में फंदा डालकर दुनिया से उठ जाना पड़ा।
विकास पुरूष ने गांव के लिए जो कुछ किया है, उसे याद करके गांव के लोगों की आंखे भर आती हैं, आदर से नहीं बल्कि दर्द के मारे। लालवाणी जी भी कोठी में पड़े रोते रहते हैं। सोचते हैं कि जो सत्ता उनके हाथ ही नहीं आई, उसके लिए उन्होंने बेशुमार लोगों को मरवा दिया। अब अंत समय है। मरने के बाद पुण्य ही काम आना है और वह पाप के मुक़ाबले बहुत कम है। इसी वजह से अड्डू दादा आजकल आहत हैं।
विकास पुरूष आहत है या नहीं, हमें पता नहीं। किसी भाई बहन को उसका हाल चाल पता चले तो हमें भी बताना।
3 comments:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-04-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562)"बुरा लगता हो तो चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट का लिंक नहीं देंगे" (चर्चा मंच-1569) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया व बेहतर प्रस्तुति , अनवर सर धन्यवाद !
नवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
शुक्रिया .
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