Wednesday, May 30, 2012

कुरआन का चमत्कार Buniyad on NBT



"और जो 'हमने' अपने बन्दे 'मुहम्मद' पर 'कुरआन' उतारा है, अगर तुमको इसमें शक हो तो इस जैसी तुम एक 'ही' सूरः बनाकर ले आओ और अल्लाह के सिवा जो तुम्हारे सहायक हों' उन सबको बुला लाओ' अगर तुम सच्चे हो। फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम हरगिज़ नहीं कर सकते तो डरो उस आग से जिसका ईंधन इनसान और पत्थर हैं] जो इनकारियों के लिए तैयार की गई है" -('पवित्र कुरआन' 2 : 23-24) विस्‍तार से जानने के लिये देखें
दुःख दर्द का इतिहास
 मनुष्य जाति का इतिहास दुख-दर्द और जुल्म की दास्ताना है। उसका वर्तमान भी दुख दर्द और ज़ुल्म से भरा हुआ गुज़र रहा है और भविष्य में आने वाला विनाश भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है।
 ऐसा नहीं है कि इनसान इस हालत से नावाक़िफ़ है या उसने दुख का कारण जानने और दुख से मुक्ति पाने की कोशिश ही नहीं की। इनसान का इतिहास दुखों से मुक्ति पाने की कोशिशों का बयान भी है। वर्तमान जगत की सारी तरक्‍की और तबाही के पीछे यही कोशिशें कारफ़रमा हैं।
dekhiye poori post aur comments:

कुरआन का चमत्कार


Tuesday, May 29, 2012

सगुन: मन में नेह के तार बहुत बा

भोजपुरी ग़ज़ल 

मन में नेह के तार बहुत बा.
ई नदिया में धार बहुत बा.

तनिको चूक के मौका नइखे 
 गरदन पर तलवार बहुत बा.

सौ एके छप्पन के आगे 
पर्चो भर अखबार बहुत बा.

काहे गांव से भगत बा ड 
गांव में कारोबार बहुत बा.

के अब केकर दुःख बांटे ला  
बनल रहे व्यवहार बहुत बा.

मिल जाये त कम मत बुझिह 
चुटकी भर संसार बहुत बा.

---देवेंद्र गौतम 

(समकालीन भोजपुरी साहित्य में प्रकाशित)


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ब्लोगिंग के उत्थान में शानदार भूमिका है फेसबुक की ~ Ratan Singh Shekhawat

Monday, May 28, 2012

हॉकी के जादूगर हो .दुनिया को फिर से दिखलाओ !

कदम जमी पे जमा ..आसमान छू आओ ;

हॉकी के जादूगर हो .दुनिया को फिर से दिखलाओ !

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मिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड
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अरे भई साधो......: झारखंड जन संस्कृति मंच का राष्टीय सृजनोत्सव

रांची के पटेल भवन में 26 से 28 मई 2012 तक आयोजित  झारखंड जन संस्कृति मंच के तीसरे राज्य सम्मलेन में सामूहिकता की भावना पर पूंजी, बाज़ार और सरकार के हमले को चिंता का मुख्य विषय माना गया. आदिवासी संस्कृति प्रकृति के साथ साहचर्य और सामूहिकता की संस्कृति रही है इसलिए उन्हें उजाड़ने की कोशिशें हो रही हैं, लूट और दमन का शिकार बनाया जा रहा है. सम्मलेन को राष्टीय सृजनोत्सव के रूप में मनाया गया जिसमें छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली  आदि कई राज्यों के साहित्यकारों, सांस्कृतिक  टीमों की भागीदारी हुई. उदघाटन सत्र के दौरान हिंदी के प्रख्यात आलोचक एवं जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. मैनेजर पाण्डेय ने ग्रीन हंट को ट्रायबल हंट करार दिया. उनके अनुसार सृजन अथवा निर्माण का काम मजदूर, किसान, आदिवासी, दलित यानी साधारण लोग करते हैं जबकि विनाश का काम बड़े लोग करते हैं. मनमोहन सिंह का अर्थशास्त्र जल, जंगल, ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों की लूट की ओर केंद्रित है. प्रकृतिपुत्र आदिवासी इसका तीव्र प्रतिरोध करते हैं इसलिए उन्हें उजाड़ने का अभियान चलाया जा रहा है.इसके खिलाफ संस्कृतिकर्मियों को आगे आना होगा. लेकिन संस्कृतिकर्म के समक्ष भी गंभीर चुनौतियां हैं. पूँजी की शक्तियां तरह-तरह के प्रलोभन का जाल बिछाकर संस्कृतिकर्म को अपने शिकंजे में लेने का प्रयास कर रही हैं. जाल में नहीं फंसने पर हत्या तक कर दी  है. हाल के वर्षों में कई साहित्यकार और संस्कृतिकर्मी शहीद हो गए. समकालीन जनमत के संपादक रामजी राय ने पेट के बल पर मनुष्यता को झुकाने और व्यक्तित्व के व्यवसायीकरण की सरकारी साजिशों के खिलाफ जोरदार सांस्कृतिक प्रतिरोध का संकल्प लेने का आह्वान किया. साहित्यकार रविभूषण ने कहा कि जन जीवित रहेगा तो जन विरोधी ताकतें ज्यादा देर तक टिकी नहीं रह सकेंगी. डा. बीपी  केसरी ने ऐसी सांस्कृतिक टीमों की जरूरत पर बल दिया जो जनता के बीच जायें उसके सुख-दुःख में शामिल हों. उनके संघर्ष को अभिव्यक्ति दें.
सम्मलेन के दूसरे दिन आज का समय और संगठित संस्कृतिकर्म की चुनौतियां तथा देशज साहित्य में प्रतिरोध के स्वर विषय पर परिचर्चाओं का आयोजन किया गया. इसमें डा. मैनेजर पाण्डेय ने सामूहिकता में सृजन की क्षमता को विकसित करने की शक्ति होने की बात कही और देश-समाज के दुःख को व्यक्तिगत दुःख से बड़ा बताया. कथाकार रणेंद्र ने कहा कि पूँजी के बढ़ते प्रभाव ने संस्कृतिकर्म के सभी रूपों को विलोपित करने का अभियान चला रखा है. मीडिया का एक बड़ा हिस्सा पूंजीवाद के दलाल की भूमिका में आ चूका है. आज का रावण दशानन नहीं सहस्त्रानन है. सेमिनार को  डा रविभूषण, रामजी राय, छत्तीसगढ़ जसम के जेबी नायक, शम्भू बादल, जनवादी लेखक संघ के जे खान, पश्चिम बंगाल के अमित दास, इप्टा के उमेश नजीर, इलाहाबाद जसम के केके पाण्डेय सहित अन्य लोगों ने संबोधित किया. संचालन भोजपुरी और हिंदी के साहित्यकार बलभद्र ने किया. विषय प्रवेश जसम के राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण ने कराया. अध्यक्षता डा. बीपी केसरी ने की. देशज साहित्य में प्रतिरोध के स्वर विषय पर रणेंद्र, कालेश्वर, शिशिर तुद्दु, बलभद्र, गिरिधारी लाल  गंझू, लालदीप गोप, सरिका मुंडा, ज्योति लकड़ा आदि ने संबोधित किया. 

-----देवेंद्र गौतम


 अरे भई साधो......: झारखंड जन संस्कृति मंच का राष्टीय सृजनोत्सव:

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Sunday, May 27, 2012

ग़ज़लगंगा.dg: कौन किसकी पुकार पर आया

कौन किसकी पुकार पर आया.
जो भी आया करार पर आया.

तेज़ रफ़्तार कार पर आया.
कौन गर्दो-गुबार पर आया?

सबकी गर्दन को काटने वाला 
आज चाकू की धार पर आया.

जो छपा था महज़ दिखावे को 
मैं उसी इश्तेहार पर आया.

शाख दर शाख कोपलें फूटीं 
खुश्क जंगल निखार पर आया.

उसने दोजख से इक उछाल भरी 
और जन्नत के द्वार पर आया.

एक सौदा निपट गया गोया 
लाख मांगा हज़ार पर आया.

सबके तलवे लहूलुहान मिले 
कौन फूलों के हार पर आया?

जीत पर उतना खुश नहीं था मैं 
जो मज़ा उसकी हार पर आया.

एक तूफ़ान थम गया गौतम 
एक दरिया उतार पर आया.

----देवेंद्र गौतम 

65 साल की सास के साथ किया रेप


शराब के नशे में 65 साल की सास के साथ किया रेप Rape with Mother in law

  • Sunday, May 27, 2012
  •  by 
  • DR. ANWER JAMAL
  • नागपुर।। नागपुर में एक शर्मनाक घटना सामने आई है। आरोप के मुताबिक, यहां पर शराब के नशे में एक शख्स ने अपनी 65 साल की सास का रेप कर दिया। घटना के बाद से ही आरोपी रमेश गव्हाणे फरार है। रेप की शिकार महिला की बेटी ने कोराडी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई है। पुलिस गव्हाणे की तलाश में जुट गई है। पुलिस का कहना है कि सोमवार...
    Read More...

    Saturday, May 26, 2012

    अपनी-अपनी स्थिति जानकर लोग फर्जी तरीके से ज्यादा वोट करने लगे हैं -Ravindra Prabhat


    रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
    सुज्ञ जी,
    आये हुए मतों का पूरी बारीकी से अध्ययन किया जा रहा है, रुझान देने के बाद कई ब्लोगरों के पक्ष में मतों की बाढ़ सी आ गयी , इसलिए ऐसा बोगस वोट रोकने के लिए किया गया है, क्योंकि अपनी-अपनी स्थिति जानकर लोग फर्जी तरीके से ज्यादा वोट करने लगे हैं, जो उचित नहीं है . ऐसे ब्लोगरों के पक्ष में भी ज्यादा से ज्यादा वोट प्राप्त हो रहे हैं जिनके आठ-दस ब्लॉग पोस्ट ही आये हैं अभी तक . पात्रता रखने वाले ब्लोगरों का चयन हो तो सभी को ख़ुशी होगी . वातावरण की पवित्रता बनी रहनी चाहिए .

    रचना ने कहा…
    निर्णायक मंडल
    परिकल्पना सम्मान-२०११ हेतु रचनाकारों के चयन के लिए , हमारे निर्णायक :
    मुख्य समन्वयक सह मार्गदर्शक :
    डा. सुभाष राय ( मुख्य संपादक : दैनिक जनसंदेश टाइम्स,लखनऊ )
    मुख्य सलाहकार :
    श्रीमती सरस्वती प्रसाद (वरिष्ठ कवियित्री,पुणे )
    श्री समीर लाल समीर, टोरंटो (कनाडा )
    निर्णायक मंडल :
    श्रीमती निर्मला कपिला,नंगल (पंजाब)
    डा. अरविन्द मिश्र, वाराणसी
    श्री खुशदीप सहगल, दिल्ली
    श्री सुमन सिन्हा,पटना
    श्री गिरीश पंकज, रायपुर
    श्री मनोज कुमार,कोलकाता
    श्रीमती शिखा वार्ष्णेय, लन्दन
    श्रीमती दर्शन कौर धनोए,मुम्बई
    श्री शाहिद मिर्ज़ा शाहिद,मेरठ
    श्री ललित शर्मा,अभनपुर
    श्रीमती अरुणा कपूर,दिल्ली
    श्री पवन चन्दन,दिल्ली
    श्री बसंत आर्य,मुम्बई
    श्री विरेन्द्र शर्मा, मिशिगन (यु एस ए)
    * उपरोक्त निर्णायकों के अभिमत के साथ संपादक मंडल के सदस्यों क्रमश: रवीन्द्र प्रभात, अविनाश वाचस्पति,रश्मि प्रभा,रणधीर सिंह सुमन, जाकिर अली रजनीश,शहनवाज़ और कनिष्क कश्यप भी निर्णायकों के साथ सहायक की भूमिका में होंगे !
    jitnae bhi log niranayak mandal mae haen unko kisi bhi samaan kae liyae vote nahin kiyaa jaana chahiyae

    niranayak sammaan kae adhikaari nahin hotaa hae.

    परिकल्पना सम्मान हेतु चयनित ब्लॉगरों की सूची


    Friday, May 25, 2012

    औरत की हक़ीक़त Part 4 - Dr. Anwer Jamal

    (प्रेम और वासना की रहस्यमय पर्तों का एक मनोवैज्ञानिक विवेचन)
    तारा देवी गहनों में लदी हुई दुल्हन की तरह अपने बेड पर बैठी थीं और यह सवाल उनके दिल में ज़ोर ज़ोर से सिर उठा रहा था कि ‘इतने धनी-मानी और देवता आदमी ने एक वेश्या से शादी क्यों की ?‘
    जो सवाल हल न हो पाए वह आदमी के लिए राज़ बन जाता है। हमराज़ ही कोई राज़ छिपाए, इसे औरत की फ़ितरत कभी गवारा नहीं करती।


    औरत की हक़ीक़त Part 4 (प्रेम और वासना की रहस्यमय पर्तों का एक मनोवैज्ञानिक विवेचन) - Dr. Anwer Jamal






    Wednesday, May 23, 2012

    सूफ़ी कौन है और उसका क्या काम है ? 2 in 1 post

    सूफ़ी रहस्यवाद-5

    अमीर खुसरो
    सूफ़ी ईश्वर से प्रेम करता है और यह विश्वास रखता है कि ईश्वर उससे प्रेम करता है और यह भी कि ईश्वर का हरेक काम हिकमत (तत्वदर्शिता) से भरा होता है। जब लोग केवल परंपराओं का पालन कर रहे होते हैं, तब सूफ़ी उस परंपरा के मूल का निर्वाह भी कर रहा होता है। मिसाल के तौर पर नमाज़ को लिया जाए तो जब आम आदमी नमाज़ में खड़े होने और झुकने की क्रियाएं कर रहा होगा तब सूफ़ी इन क्रियाओं के मूल को भी आत्मसात कर रहा होता है। जब वह सज्दे में अपना सिर रखता है, तब वह अपने अहंकार को भी त्याग देता है। सूफ़ी केवल बाह्याचार का रस्मी पालन नहीं करता बल्कि उस तत्व को भी ग्रहण करता है जो कि उससे वांछित होता है। यह सब करने के लिए वह प्रेम से ऊर्जा लेता है और इससे उसका प्रेम और भी ज़्यादा बढ़ जाता है।
    See:

    सूफ़ी कौन है और उसका क्या काम है ?

    Tuesday, May 22, 2012

    AHSAS KI PARTEN: बुराई क्या है ? Evil

    AHSAS KI PARTEN: बुराई क्या है और बुराई को मिटाने के लिए कोई अपनी जान क्यों गवांए ? Evil
    इन दो सवालों को हल कर लिया जाए तो बुराई का ख़ात्मा किया जा सकता है।
    1. बुराई क्या है ?
    2. दूसरों का जीवन बेहतर बनाने के लिए कोई अपना जीवन क्यों गवांए और अपने बीवी बच्चों को दर दर का भिखारी क्यों बनाए ?

    जब यह धारणा आम हो जाए कि मरने के बाद कुछ होना नहीं है तो फिर इस ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए आदमी कुछ भी कर सकता है क्योंकि वह जानता है कि दुनिया में सज़ा कम ही मिलती है और यह कमज़ोरों को ज़्यादा मिलती है।
    देखिए 

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    मुंबई।। हरियाणा के यमुनानगर में एक महिला डॉक्टर द्वारा अबॉर्शन के बाद कन्या भ्रूण को टाइलेट में फ्लश करने के बाद उससे भी भयावह मामला सामने आया है। महाराष्ट्र के बीड में एक ऐसे ही 'डॉक्टर डेथ' का पता चला है, जो कन्या भ्रूण के अबॉर्शन के बाद सबूत मिटाने के लिए उसे अपने कुत्तों को खिला देता था।

    Monday, May 21, 2012

    मेरा आत्म सम्मान अभी ज़िंदा है - Mahendra Shriwastawa

    जनाब महेंद्र श्रीवास्तव जी एक पत्रकार हैं, एक ब्लॉगर हैं और उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी यह है कि वह सच कह देते हैं। जब लोग मसलहतें और हानि लाभ देखकर सच बोलते हैं। वह तब भी इसलिए सच बोलते हैं कि सच ही बोलना चाहिए और जब आत्म सम्मान से जुड़ा हुआ मुददा हो तो सच ज़रूर ही बोलना चाहिए।

    जनाब महेंद्र श्रीवास्तव जी परिकल्पना के दशक का ब्लॉगर चयन पर हुए विवाद पर कहते हैं कि
    हर शख्स अपनी तस्वीर को बचाकर निकले,
    ना जाने किस मोड़ पर किस हाथ से पत्थर निकले।



    दरअसल मैने कहा ना कि जब आदमी ईमानदार ना हो तो वह क्या कह रहा है, क्या कर रहा है, खुद नहीं समझ पाता। अगर ऐसा होता तो जो बातें डा. दिव्या की हमारे भाई को आसानी से समझ में आ गईं वही बातें मैने कहीं थी तो उन्हें समझ में क्यों नहीं आई ? मैने कहा तो मुझसे कुतर्क करते रहे। तब मुझे लगा कि भगवान राम ने ठीक ही कहा था कि "भय बिन होय ना प्रीत"। क्योंकि सभी को पता है कि मैं अपनी बातें बहुत ही संयम तरीके से कहता हूं, आप माने ना माने मेरी बला से। लेकिन डा. दिव्या बहन आयरऩ लेडी है, वो पहले आराम से बात समझाने की कोशिश करतीं है, अच्छा हो कि लोग बात यहीं आसानी से समझ जाएं, वरना फिर तो उसकी खैर नहीं। क्योंकि सब जानते  हैं कि परिकल्पना से कहीं ज्यादा उनकी पाठक संख्या है। वो कुछ कहतीं है तो समझ लेना चाहिए कि ब्लाग का एक बडा तपका ये बात कह रहा है। परिकल्पना से कई गुना उनकी पाठक संख्या भी है। ऐसे में जब उन्होंने ये मु्ददा उठाया तो परिकल्पना परिवार में हडकंप मच गया। उन्हें लगा कि विरोधियों की ताकत बढ़ रही है, बस उन्हें अपने खेमें में करने की साजिश शुरू हो गई। लेकिन उनके आड़ मे जो कुछ किया जा रहा है, उससे बदबू आ रही है।
    ...नाराज लोगों के मुंह बंद कराने के लिए उनका नाम सम्मान सूची में डाला जा रहा है। ज्यादा नाराजगी हुई तो हो सकता है कि उन्हें दिल्ली आने जाने के लिए हवाई जहाज का टिकट और यहां पांच सितारा होटल का प्रबंध कर दिया जाए। वैसे ये सबके लिए तो संभव नहीं है, गुड लिस्ट वाले ही इसका लाभ उठा पाएंगे। बहरहाल अब कौन समझाए आयोजकों को ? वे कुछ लोगों को तो पांच सितारा होटल और हवाई जहाज का टिकट दे सकते हैं, पर 41 को देना तो मुझे नहीं लगता कि इनके लिए संभव होगा। फिर जिन लोगों का नाम मजबूरी मे रखा गया है, उन्हें तो तारीख बता दी जाएगी और कहा जाएगा कि वो खुद ट्रेन से पहुंचे। खैर डैमेज कंट्रोल का जो तरीका अपनाया जा रहा है उससे तो मुझे लगता है कि ये आयोजक या तो बेचारे बहुत सीधे हैं या फिर 24 कैरेट के मूर्ख। क्योंकि कोई भी ब्लागर दशक के पांच ब्लागर में नहीं चुना जाता है, तो उसे ज्यादा तकलीफ नहीं होगी, उसे लगेगा कि पांच लोगों को ही तो चुनना था, नहीं आया होगा मेरा नाम। पर अब 41 में नाम नही आया तब तो खैर नहीं। उसे लगेगा कि जरूर कुछ गडबड़झाला है।
    उनकी पूरी पोस्ट और ब्लॉगर्स की टिप्पणियां देखने के लिए लिंक यह है-

    सम्मान से बहुत बड़ा है आत्म सम्मान ...

    हमारी राय इस पोस्ट पर यह है कि
    बुराई तब राज करती है जबकि अच्छे लोग चुप रहते हैं।
    बुरे लोग हमारे बीच में ही होते हैं। उनके सींग नहीं होते कि उन्हें शक्लों से पहचाना जा सके।
    उनके कामों से उनकी पहचान होती है।
    सम्मानित करना अच्छी बात है लेकिन इस काम को ईमानदारी और पारदर्शिता से किया जाए और बात जब दशक के ब्लॉगर का चुनाव करने की बात हो तो यह बात सबकी प्रतिष्ठा से अनायास ही जुड़ जाती है।
    जब बात 30-40 हज़ार से ज़्यादा ब्लॉगर्स से जुड़ी हो तो उनकी राय को अहमियत देना ज़रूरी है।
    ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने उनके हरेक सम्मान आयोजन की समीक्षा की और ब्लॉगर्स को समय रहते चेताया। इसके बावजूद भी ब्लॉगर्स सम्मान पाने के लिए दिक्कतें झेलकर दूर दराज़ तक से दिल्ली आए और पूंजीपति स्पांसर के कार्यक्रम में एक शोपीस की तरह ठगे से बैठे रहे।
    अपनी ज़ाती रंजिश के चलते ईनाम की सूची ही बदल डाली। जिन ब्लॉगर्स को ईनाम देना घोषित किया था, उनमें से किसी को छोड़ दिया और किसी का नाम जोड़ दिया।
    एक पत्रकार ब्लॉगर की तो ऐसी फ़ज़ीहत हुई कि वह अपना ईनाम वहीं ठुकराकर लौटे और ऐलान कर दिया कि अब हिंदी में ब्लॉगिंग नहीं करूंगा, केवल अंग्रेज़ी में ही किया करूंगा।
    मज़े की बात यह है कि वापसी में उनके साथ 2 ब्लॉगर और भी थे। दोनों उनके दोस्त थे। उन्हें कुढ़ते-कलपते हुए देखकर भी वे दोनों अपने अपने ईनाम और शाल-दुशाले कसकर पकड़े बैठे रहे और उन्हें दिलासे देते रहे।
    ‘भड़ास‘ ब्लॉग ने उस कार्यक्रम की पूरी रिपोर्ट देते हुए बताया कि कैसे इस कार्यक्रम की भदद पिटी ?
    सम्मान पाकर लौटे कुछ ब्लॉगर्स ने भी इसकी तस्दीक़ की और आइन्दा इस तरह के सम्मान के लिए दौड़ने से भी तौबा कर ली।
    पिछली ग़लतियों से कुछ सीखा होता तो रवींद्र प्रभात जी फिर अपने फ़ैसले ज़बर्दस्ती न थोपते।
    इस बार तो उनका आयोजन शुरू से ही विवादित और संदिग्ध हो गया है।

    सुझाव केवल डा. दिव्या ने ही नहीं दिए हैं बल्कि उनसे पहले हमने दिए हैं और रचना जी, एस.एम. मासूम साहब और बहुत से दूसरे ब्लॉगर्स ने भी दिए हैं। अलबेला खत्री जी और कुछ दूसरे ब्लॉगर्स ने उनसे कुछ सवाल भी पूछे हैं। ऐतराज़ जताने वाले भी बहुत से हैं।
    दिव्या जी के अलावा भी कुछ नाम आपने और दिए होते तो तस्वीर और ज़्यादा क्लियर हो जाती कि एक ब्लॉगर का विरोध दो ब्लॉगर ने किया है, ऐसा नहीं है।
    आत्म सम्मान के प्रति सचेत ब्लॉगर अभी मौजूद हैं।

    आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से उन्हें सही राह दिखाई। आपने ‘पूरा सच‘ कहा है, यह सराहनीय है।
    ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने 2 पोस्ट्स के माध्यम से उसे प्रकाशित किया है। दोनों ही लोकप्रिय पोस्ट्स के कॉलम में देखी जा सकती हैं।

    Sunday, May 20, 2012

    ग़ज़लगंगा.dg: रास्ते में कहीं उतर जाऊं?

    रास्ते में कहीं उतर जाऊं?
     घर से निकला तो हूं, किधर जाऊं?

    पेड़ की छांव में ठहर जाऊं?
    धूप ढल जाये तो मैं घर जाऊं?

    हर हकीकत बयान कर जाऊं?
    सबकी नज़रों से मैं उतर जाऊं?

    जो मेरा  जिस्मो-जान था इक दिन
    उसके साये से आज डर जाऊं?

    जाने वो मुझसे क्या सवाल करे
    हर खबर से मैं बाखबर जाऊं.

    जिसने  रुसवा किया कभी मुझको
    फिर उसी दर पे लौटकर जाऊं?

    क्या पता वो दिखाई दे जाये
    दो घडी के लिए ठहर जाऊं.

    वो भी फूलों की राह पर निकले
    मैं भी खुशबू से तर-ब -तर जाऊं.

    अपना चेहरा बिगाड़ रक्खा है
    उसने चाहा था मैं संवर जाऊं.

    मैंने आवारगी बहुत कर ली
    सोचता हूं कि अब सुधर जाऊं.

    ----देवेंद्र गौतम



    ग़ज़लगंगा.dg: रास्ते में कहीं उतर जाऊं?:

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    Friday, May 18, 2012

    मंदिर और मस्जिद देश की साझा संस्कृति हैं

    इमाम उमैर इलयासी और मुनि चिदानंद का प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान इज़्हारे ख़याल
    शामली (संवाददाता मुहम्मद सालिम, एसएनबी)। हिंदुस्तान में एक ऐसे समाज की ज़रूरत है, जिसमें मंदिर टूटने पर मुसलमान तड़प उठें और मस्जिद तोड़े जाने पर हिंदू उसकी हिफ़ाज़त के लिए सामने आ जाएं। यह इसलिए कि किसी भी मज़हब में दूसरों की इबादतगाह ढहाने का हुक्म नहीं दिया गया है। मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे और गिरजाघर इस देश की साझा संस्कृति है।
    इन ख़यालात का इज़्हार स्वामी मुनि चिदानंद जी महाराज और ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइज़ेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष इमाम उमैर इलयासी ने देहरादून जाते हुए यहां संयुक्त प्रेस कॉन्फ़्रेंस में किया। उन्होंने कहा -‘मुल्क में अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक का तसव्वुर ख़त्म होना चाहिए और सब को तरक्क़ी के बराबर मौक़े मिलने चाहिएं।‘
    पत्रकारों के सवालों के जवाब में उन्होंने कहा -‘हमारी इबादत के तरीक़े अलग अलग हो सकते हैं लेकिन हमारी राष्ट्रीयता एक है। हम सब हिंदुस्तानी हैं।‘
    See

    मंदिर और मस्जिद देश की साझा संस्कृति हैं

    ZEAL: दशक का चिट्ठाकार-- एक समीक्षा.


    डा. दिव्या जी की पोस्ट पर ब्लॉगर्स भी अपनी राय दे रहे हैं।
    हमने कहा कि
    आपके सुझाव वास्तव में ही अच्छे हैं और इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
    नाम सुझाकर आपने चुनावकारियों का काम और ज़्यादा आसान कर दिया है।
    परंतु इस नाचीज़ का कहना यह है कि हज़ारों ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन चुनाव द्वारा संभव नहीं है।
    जो ब्लॉगर्स कहीं कमेंट देने नहीं जाते, जो कभी ब्लॉगर्स मीट आयोजित नहीं करते, जो रू ब रू किसी से नहीं मिलते और जिनके फ़ोलोअर्स कम हैं, उन ब्लॉगर्स में से एक का भी नाम टॉप पर नहीं आ सकता।
    इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
    क्या साहित्यकारों के योगदान का आकलन किसी देश में जनता के चुनाव द्वारा किया जाता है ?
    यदि नहीं तो फिर ब्लॉगर्स के योगदान के आकलन के लिए चुनाव का आयोजन क्यों ?

    इसके बावजूद भी आपने बहुत से ऐसे नाम सुझाएं हैं जिन्होंने वास्तव में ही हिंदी ब्लॉगिंग को बहुत कुछ दिया है।
    एक अच्छी पोस्ट के लिए शुक्रिया !

    Thursday, May 17, 2012

    Sufi Darwesh: रूहानी इल्म के लिए ज़ाहिरी इल्म भी ज़रूरी है Ruhani Haqiqat

    Sufi Darwesh: रूहानी इल्म के लिए ज़ाहिरी इल्म भी ज़रूरी है Ruhani Haqiqat: रूहानी इल्म के लिए ज़ाहिरी इल्म भी ज़रूरी है Ruhani Haqiqat

    आज भारत में हज़ारों ऐसे गुरू हैं जो अपने ईश्वर और ईश्वर का अंश होने का दावा करते हैं और भारत क़र्ज़ में दबा हुआ भी है और क्राइम का ग्राफ़ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। अगर उनसे कहा जाए कि आप इतने सारे लोग साक्षात ईश्वर हैं तो भारत का क़र्ज़ ही उतार दीजिए या जुर्म का ख़ात्मा ही कर दीजिए।
    तब वे ऐसा न कर पाएंगे।
    वे सब मिलकर किसी एक मरी हुई मक्खी तक को ज़िंदा नहीं कर सकते।
    इसके बावजूद न तो वे अपने दावे से बाज़ आते हैं और न ही उनके मानने वाले कभी यह सोचते हैं कि दवा खाने वाला यह आदमी ईश्वर-अल्लाह कैसे हो सकता है ?
    रूहानियत के नाम धंधेबाज़ी और पाखंड फैला हुआ है।
    यही पाखंडी आज साधकों को भ्रमित कर रहे हैं।
    मालिक को राज़ी करने की लगन सच्ची हो और साधक अपनी अक्ल खुली रखे तो ही वह इस तरह के भ्रम से बच सकता है।
    रूहानी साधनाएं ज़रूरी हैं लेकिन पोथी का ज्ञान भी बहुत ज़रूरी है और एक सच्चा गुरू तो बुनियादी ज़रूरत है।

    Wednesday, May 16, 2012

    ब्लॉग जगत का चुनाव आयोग फ़र्ज़ी है ?


    परिकल्पना के मास्टरमाइंड ने महेंद्र श्रीवास्तव जी और एक महिला ब्लॉगर की टिप्पणियों पर ऐतराज़ जताते हुए पूछा है कि 

    हमारा कहना तो यह है कि बच्चा बूढ़ा और जवान सबकुछ एक साथ है यह। जो जैसा वह वैसा ही लिख रहा है। कुछ तो काल कवलित भी हो चुके हैं। ब्लॉग जगत बच्चा होता तो चुनाव और धंधे का जुगाड़ कैसे कर लेता ?

    जहां चुनाव होता है वहां चुनाव आयोग ज़रूर होता है। जब ब्लॉग जगत में सरकार ही नहीं है तो फिर चुनाव आयोग किसने बना दिया ?

    यह एक फ़र्ज़ी चुनाव आयोग है।
    किसी ने नामांकन नहीं भरा , किसी ने ज़मानत की राशि नहीं भरी और न ही वोटर लिस्ट बनी और आयोग ने कुछ नाम चुनकर आदेश दे दिया कि 
    ‘तुम चुनाव में खड़े हो, लड़ो चुनाव‘
    तुम्हारा नाम होगा और अपना धंधा चलेगा।
    जिसे 100 टिप्पणियां मिलती हैं उसे 4 वोट मिलने मुश्किल हो रहे हैं।
    इससे ब्लॉगर का नाम हो रहा है या वह बदनाम हो रहा है ?,
    कहना मुश्किल है।

    जब चुनाव आयोग ही फ़र्ज़ी है तो उसके नतीजे भी अवैध और अमान्य ही होंगे। वैसे भी चुनाव के ज़रिये जिस तरह के लोग सरकार में आते हैं, उनसे पिंड छुड़ाने के लिए बार बार चुनाव कराने पड़ते हैं और यहां सरकार नहीं बनाई जा रही है बल्कि एक दशक (?) में ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन करना है।
    साहित्य का आकलन साहित्य जगत कैसे करता है ?
    क्या वह कोई चुनाव आयोजित करता है ?
    नहीं , बिल्कुल नहीं।
    साहित्यकारों या ब्लॉगर्स के योगदान का आकलन चुनाव द्वारा पूरी दुनिया में कहीं भी नहीं होता लेकिन हिंदी ब्लॉग जगत में किया जा रहा है।
    एक तो ब्लॉग जगत पर मध्यावधि चुनाव थोप दिया और पता चला कि बिल्कुल बेवजह और पूछ रहे हैं कि ब्लॉग जगत बच्चा है क्या ?
    बच्चा यहां कोई नहीं है, हरेक बालिग़ भी है समझदार भी।
    हरेक जानता है कि चुनाव में पैसे वाला ही जीतता है। वही इस चुनाव में नज़र आ रहा है।
    सूची में सबसे ऊपर समीर लाल जी का नाम नज़र आ रहा है।
    समीर लाल जी का योगदान अपनी जगह है और हम भी उन्हें सम्मान की नज़र से देखते हैं लेकिन क्या यह कहना सही होगा कि हिंदी ब्लॉगिंग के एक दशक में सबसे ज़्यादा योगदान उन्होंने किया है ?

    ऐसा तो स्वयं समीर लाल जी भी नहीं कह सकते।
    मज़े की बात यह है कि नतीजा शुरू से ही ग़लत आ रहा है और जो ग़लती बता रहे हैं उनकी बोलती बंद की जा रही है।
    रवीन्द्र प्रभात जी लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं लेकिन ख़ुद उनका लोकतंत्र में कितना विश्वास है ?
    ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ ने जब उनके विरोध में ख़बर प्रकाशित की और उनकी पोस्ट पर
    कौन बनेगा इस दशक का हिन्दी चिट्ठाकार ? ) एक कमेंट के साथ उसका लिंक दिया तो उसे उन्होंने तुरंत ही डिलीट कर दिया।
    क्या विरोध के स्वर को मिटा देना ही लोकतंत्र है ?
    ...और उपन्यास का शीर्षक रखते हैं ‘ताकि बचा रहे लोकतंत्र‘ ?
    ऐसे कैसे बचेगा लोकतंत्र  ???

    ‘ब्लॉग की ख़बरें‘ देता है बिल्कुल निष्पक्ष और सच्ची ख़बरें,
    जिससे उजागर होती है ब्लॉगिंग को धंधेबाज़ी में बदलने वालों की हक़ीक़त

    इसी क्रम में महेन्द्र श्रीवास्तव जी की ताज़ा टिप्पणियां और रवीन्द्र प्रभात जी का जवाब देखिए,


    महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
    मैं रवींद्र जी का सम्मान करता हूं और मेरी आदत बेवजह की बहस में पड़ने की भी नहीं है। लेकिन मैं जो समझता हूं, उसे व्यक्त जरूर करता हूं। अच्छा होता कि आप सबके नाम लेकर टिप्पणी करते, लेकिन मैं नहीं जानता कि भाषा की कमजोरी की वजह से आपने ऐसा किया या दूसरों को छोटा दिखाने के लिए जानबूझ कर किया।
    चर्चित महिला का मतलब मुझे आप समझा दीजिएगा... जहां तक मेरी समझ और जानकारी है ये एक निगेटिव शब्द है, और कम से कम किसी महिला के नाम के आगे लगाने के पहले सोचना चाहिए।
    खैर मुझे आपने चुनाव में लोकतात्रिक व्यवस्था से अज्ञानी होना बताया है। मैं आपको विनम्रता से चुनाव और लोकतंत्र की बात समझा दूं। पहले तो चुनाव में नामांकन उम्मीदवार को खुद करना होता है, ये किसी के पिता जी नहीं करते। अच्छा होता कि यहां भी आपने लोगों से नामांकन आमंत्रित किया होता। आपने कुछ के नाम शामिल करके और एक अन्य कालम बना दिया कि कोई भी यहां आ जाए। पहला दोष तो ये है। अब सभी ब्लागर नामांकित हो गए। शायद आप जानते होंगे कि आप को उतने वोट हासिल नहीं हो सकते तो आपने यहीं ऐलान कर दिया कि मुझे वोट ना दें। बहुत सारे लोग हो सकते है, जो आपके इस चुनावी व्यवस्था को ठीक नहीं समझ रहे हों, पर उनके नाम के आगे आप दो तीन वोट लिखकर माखौल उड़ा रहे हैं।
    दूसरी बात चुनाव में बोगस वोट को रोकने का आपके पास कोई व्यवस्था नहीं है। लोग एक बोगस मेल आईडी और बोगस ब्लाग बनाए और वोट करते रहे।
    जिस तरह से आपका सिस्टम है, अगर कोई खाली आदमी है तो उस ब्लाग को विजेता बना सकता है, जो ब्लाग आज खुला हो और उस पर कोई पोस्ट भी ना हो।
    बहरहाल मैने तो सिर्फ अपनी बात रखी थी, आपको इतनी तकलीफ होगी, मैने सोचा नहीं था। वरना हम रोजमर्रा के जीवन में तमाम चीजों की अनदेखी करते हैं, इसे भी कर देते।

    रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
    महेंद्र जी,
    मैं आभारी हूँ जो आप मुझे सम्मान की नज़रों से देखते हैं . चर्चित महिला नहीं "चर्चित महिला ब्लोगर" कहा गया है पोस्ट में . आप बहुत बाद में आएं हैं इस ब्लॉग जगत में इसलिए शायद आपको यह नहीं पता कि यह संवोधन अदा जी के लिए है . उन्हें विगत वर्ष "वर्ष की महिला ब्लोगर" का सम्मान प्राप्त हुआ था और वे लगातार चर्चा मे रही थी। क्या चर्चित कहना गलत है ? कोई जरूरी नहीं कि किसी का नाम लेकर ही अपनी बात कही जाए .
    रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
    कोई टीका-टिप्पणी करके आनंद उठाता है तो कोई किसी विषय पर चलती बहस में अपने तर्कों से झंडे गाड़ देता है... तो कभी बहुत संवेदनात्मक सामाजिक मुद्दों पर गरमा-गरमी भी हो जाती है ....सबका आनंद अलग-अलग है और यही ब्लॉग जगत की विशेषता भी है । टी वी चैनल वाले एस एम एस के माध्यम से वोट मांगते है ....कोई हमें बताएगा की उसकी विश्वसनीयता क्या है ?
    महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
    जी तो ऐसे कहिए ना कि आप मनोरंजक चैनलों से प्रभावित हैं और चैनल आपका रोड माडल है। टीवी चैनल मे रहते हुए मैं इस वोटिंग सिस्टम का विरोधी हूं।
    आपको पता होगा कि जितने भी रियलिटि शो है, सभी में लोग प्रीपेड फोन से फर्जी वोटिंग करते हैं। लेकिन वहां एक से ज्यादा वोट करने की मनाही नहीं होती है। वहां वोटिंग की लाइन खुलते ही आपको अपने प्रिय कलाकार के लिए वोटिंग करनी होती है और ताकतवर ( ताकत यानि पैसा) जीत जाता है।

    भाई रवींद्र जी हम जो एसएमएस मंगाते हैं वो एक व्यावसायिक उद्देश्य है। पता नहीं आपको पता है या नहीं वैसे प्रति एसएमस 30 या 40 पैसे की होती है, पर प्रतियोगिता में शामिल होने वाले एसएमएस की कीमत छह रुपये होती है। जिसमें चैनल और टेलीफोन कंपनी आधी आधी रकम बांटते हैं।

    अगर आप इसी व्यवस्था से प्रभावित होकर ऐसा चुनाव करा रहे हैं तब तो कोई बात नहीं यहां भी पैसे वाले अधिक संसाधनों वाले जीत जाएं।
    रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
    महेंद्र जी, हमारे सामने जो तकनीकी है हम उसी मे बेहतर करने की कोशिश कर सकते हैं । या फिर नयी तकनीकी के आने का इंतज़ार करें। व्यवस्था मे सुधार धीरे-धीरे होता है एकबारगी नहीं। मैं चाहता तो विभिन्न वर्गों से जैसे 41 चिट्ठाकारों का चयन मैंने निर्णायक मण्डल बनाकर किया इसका भी कर देता ।मैं एस एम एस जैसी व्यवस्था से प्रभावित होकर चुनाव नहीं करा रहा,बल्कि वोटिंग कराने का अभिप्राय यह है कि वास्तविक वस्तुस्थिति से अवगत हुआ जा सके ।
    महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
    वैसे मैं जानता हूं कि हम बेवजह की बहस कर रहे हैं...मेरी तकलीफ तो सिर्फ ये थी कि आपने मेरे बारे में टिप्पणी की कि.........

    एक ब्लॉगर ने तो वोट के लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर ही आपत्ति दर्ज कर दी, जबकि पूरी दुनिया चुनाव की लोकतान्त्रिक व्यवस्था को श्रेष्ठ व्यवस्था की संज्ञा देती है । .......

    इसलिए मैने आपको बताने की कोशिश की, लोकतंत्र में चुनाव में उम्मीदवार को खुद नामांकन करना होता है, अब ये क्या बात है कि आपने कुछ लोगों के साथ मिलकर नाम तय कर दिए और जब नाम तय किए गए तो अन्य का कालम क्यों। मसला साफ है कि आपने जिस टीम के साथ ये नाम तय किए उस पर आपको भी भरोसा नहीं था। .. अगर अन्य का कालम है तो फिर नाम क्यों ?

    सब लोग अपने पसंदीदा का नाम लिख कर वोट कर देते।

    अब आप सीमित संसाधनों की बात कर रहे हैं। जबकि पहले आप मेरे लोकतांत्रिक चुनाव व्यवस्था के ज्ञान पर उंगली उठा रहे थे।


    खैर मैं अपनी बातों को बस यहीं पर विराम देता हूं। मेरा आशय किसी के विरोध या समर्थन करना नहीं है।
    रवीन्द्र प्रभात ने कहा…
    आखिरकार आपने अपनी नाराजगी का सबब बता ही दिया, खैर देर से ही सही जानकारी तो हुयी कि आप मुझसे नाराज़ क्यों हैं ? मुझे खुशी है कि आपके सुझाव से भविष्य मे मेरा मार्गदर्शन होगा । 

    Tuesday, May 15, 2012

    अंदाज ए मेरा: सवाल ही सवाल???

    अंदाज ए मेरा: सवाल ही सवाल???: ... और नक्सली घटनाएं हो रहीं हैं। एक तरफ सरकार नक्सलियों से बात करने का दावा कर रही है। सरकार की बनाई हाईपावर कमेटी नक्सलियों की रिहाई क...

    Monday, May 14, 2012

    दशक का ब्लॉगर, एक और गड़बड़झाला

    हिंदी ब्लॉगिंग को एक दशक पूरा नहीं हुआ और दशक का ब्लॉगर और ब्लॉग चुना जा रहा है।
    यह एक नायाब आयडिया है। इसका नतीजा वही होगा कि सम्मान तो मिलेगा केवल 5 ब्लॉगर्स को अपमान आएगा बाक़ी सबके हिस्से में। न चुने जाने का दंश मालूम नहीं किसके संवेदनशील दिल को कितना ज़्यादा दुखा दे।
    गटबाज़ी और रंजिश की वजह से पहले ही बहुत से हिंदी ब्लॉगर्स रूख़सत हो चुके हैं लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग के ताबूत में कीलें लगातार ठोंकी जा रही हैं।
    कील ठोंकने वाले वही पुराने दोनों ईनामी हैं।
    दशक के हिन्दी चिट्ठाकार:
    (1) समीर लाल समीर    (41 वोट)
    (2) रंजना (रंजू भाटिया)  (21 वोट)
    (3) रवि रतलामी        (14 वोट)
    (4) पूर्णिमा वर्मन        (09 वोट)
    (5) कविता वाचक्नवी     (07 वोट)
    (6) अनूप शुक्ल         (05 वोट)
    (7) आशीष श्रीवास्तव     (03 वोट)
    (8) सतीश सक्सेना       (02 वोट)

    दृष्टव्य : जितेंद्र चौधरी और सुनील दीपक को कोई वोट नहीं मिला है अभीतक । साथ ही अन्य विकल्प के अंतर्गत प्राप्त मतों के आधार पर रवीन्द्र प्रभात (05 वोट), रश्मि प्रभा(03 वोट), अविनाश वाचस्पति (01वोट),हंसराज सुज्ञ(01 वोट),राजेन्द्र स्वर्णकार(01 वोट), उमेश चतुर्वेदी (01 वोट),संगीता पूरी (01 वोट),डा। श्याम गुप्त  (01 वोट), दिव्या श्रीवास्तव (01 वोट).......... आदि को भी वोट प्राप्त हुये हैं । रवीन्द्र प्रभात को छोडकर शेष सभी वोट आखिरी परिणाम मे शामिल किए जाएँगे ।
    दशक का हिन्दी चिट्ठा :
    (1) उड़न तश्तरी           (39 वोट)
    (2) फुरसतिया             (19 वोट)
    (3)  ब्लोगस इन मीडिया    (11 वोट)
    (4) भड़ास                (09 वोट)
    (5) नारी                 (08 वोट)
    (6) छींटे और बौछारें       (05 वोट)
    (7) साई ब्लॉग            (03 वोट)
    (8) साइंस ब्लॉगर असोसियेशन (02 वोट)
    (9) मेरा पन्ना             (01 वोट)
    (10)  जो न कह सके       (01 वोट)

    इन नतीजों को देखकर जनाब महेंद्र श्रीवास्तव जी ने कहा है कि
    महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…
    आप सब लोग ब्लागिंग मास्टर हैं। मैं तो कुछ समय पहले ही यहां आया हूं।
    आप सब जानते हैं कि यहां ब्लागर्स के बीच में गुट बने हुए हैं। इसे सबसे पहले खत्म करने की जरूरत थी, लेकिन इस वोटिंग सिस्टम में आग में घी डालने का काम किया है।
    मैं देखता था कि गांवों में पहले बड़ा सुकून था, जो बुजुर्गवार कह देते थे, वो सभी को मान्य होता था, पर जब से पंचायती राज के तहत गांव गांव चुनाव होने लगे, गांव की शांति खत्म हो गई, खून खराबा होने लगा।
    मुझे लगता है कि हिदी ब्लागिंग के 10 साल को और बेहतर बनाने के लिए बहुत से तरीके थे, लेकिन आप लोगों ने वोटिंग कराकर इसका हाल गांव से भी बुरा कर दिया।
    मै फिर कहता हूं कि मुझे ज्यादा दिन यहां नहीं हुए हैं, लेकिन मै बता सकता हूं कि किन लोगों का ब्लाग जगत में कितना योगदान है। किसने ब्लागिंग को सम्मान दिलाया है। मै ही क्या आप सब भी जानते हैं। अरे इस वोटिंग सिस्टम से आप ये मैसेज दे रहे हैं कि तमाम वरिष्ठ ब्लागर्स को दो तीन वोट मिले हैं....
    खैर... ध्यान रखिएगा कहीं यहां भी लालू,कलमाडी, राजा टाइप लोग ना वोट का जुगाड़ कर लें...

    उत्साह में आकर किसी को वोट देने से पहले ज़रा यह सोचिए कि इस वोटिंग से हिंदी ब्लॉगर्स में किसका भला होगा ?

    वोट पाने वाले का या कि वोटिंग के मकड़जाल का आयोजन करने वाले का ?
    इस सबके बावजूद इस गेम के मास्टरमाइंड की तारीफ़ अवश्य करें कि प्रबुद्ध समझे जाने वाले हिंदी ब्लॉगर्स की ऊर्जा को अपने हित में कुशलतापूर्वक इस्तेमाल कर लिया।

    बीमारी और इलाज के बारे में -Dr. T. S. Daral

    डा. टी. एस. दराल जी की पोस्ट, बीमारी और इलाज के बारे में प्रामाणिक जानकारी देते हुए.

    ज़रा संभल के --- स्वास्थ्य के मामले में चमत्कार नहीं होते .

    शायद हमारा देश ही एक ऐसा देश होगा जहाँ रोगों का इलाज करने के लिए दादी नानी से लेकर साधु बाबा तक सभी चिकित्सक का काम धड़ल्ले से करते हैं . न सिर्फ मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धतियाँ ही अनेक हैं , बल्कि यहाँ बिना किसी डिग्री धारण किये और बिना सरकार से मान्यता प्राप्त किये अनेकों सिद्ध पुरुष , स्व घोषित चिकित्सक और घराने/ सफ़ाखाने मोटी रकम वसूल कर धर्मभीरु और मूढमति जनता को लूटते हुए मिल जायेंगे .

    आजकल टी पर भी ऐसे अनेकों कार्यक्रम दिखाई देने लगे हैं जहाँ कोई ज्योतिषी, पंडित जी , टेरो कार्ड रीडर , वास्तु एक्सपर्ट , साधु , बाबा या कोई भी पहचान रहित बंदा पेट के कीड़ों से लेकर कैंसर तक का शर्तिया इलाज करने का दावा करते हैं .

    हमें तो सबसे ज्यादा हास्यस्पद तब लगता है जब एक ज्योतिषी अपना कंप्यूटर लेकर बैठ जाता है और फोन पर किसी की स्वास्थ्य समस्या सुनकर तुरंत computerized इलाज बता देता है .

    एक हरियाणवी लाला तो हर बीमारी का इलाज घर में मिलने वाले मसालों से ही बता देता है . माना हल्दी बड़ी गुणकारी है लेकिन हर तरह के रोग इसके सेवन से ठीक हो जाते तो सैकड़ों दवा निर्माण कम्पनियाँ ( pharmaceutical firms ) बंद न हो जाएँ . ऊपर से ज़नाब हर फोन करने वाले को यह भी बताते हैं , हमारा पैकेज खरीद लो , शर्तिया फायदा होगा . पैकेज भी सौ दो सौ का नहीं बल्कि तीन से चार हज़ार रूपये का . हम तो इस कार्यक्रम को बस दो चार मिनट के लिए एक हास्य कार्यक्रम के रूप में देखते हैं .

    उनसे हमारा संवाद कुछ यूं हुआ-
    1. इलाज के नाम पर गर्म होता हवसख़ोरी का बाज़ार
      चमत्कार न होते तो डाक्टर को मौत न आती।

      ऐसा देखा जा सकता है कि बहुत बार हायजीनिक कंडीशन में रहने वाले डाक्टर बूढ़े हुए बिना मर जाते हैं जबकि कूड़े के ढेर पर 80 साल के बूढ़े देखे जा सकते हैं।
      मिटटी पानी और हवा में ज़हर है लेकिन लोग फिर भी ज़िंदा हैं।
      क्या यह चमत्कार नहीं है ?

      लोग दवा से भी ठीक होते हैं और प्लेसिबो से भी।

      भारत चमत्कारों का देश है और यहां सेहत के मामले में भी चमत्कार होते हैं।
      हिप्नॉटिज़्म को कभी चमत्कार समझा जाता था लेकिन आज इसे भी इलाज का एक ज़रिया माना जाता है।
      जो कभी चमत्कार की श्रेणी में आते थे, उन तरीक़ों को अब मान्यता दी जा रही है।
      एक्यूपंक्चर का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन उसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अगर मान्यता दी जा रही है तो सिर्फ़ उसके चमत्कारिक प्रभाव के कारण।
      होम्योपैथी भी एक ऐसी ही पैथी है।
      वैज्ञानिक आधार पर खरी ऐलोपैथी से इलाज कराने वालों से ज़्यादा लोग वे हैं जो कि उसके अलावा तरीक़ों से इलाज कराते हैं।
      पूंजीपति वैज्ञानिकों से रिसर्च कराते हैं और फिर उनकी खोज का पेमेंट करके महंगे दाम पर दवाएं बेचते हैं।
      वैज्ञानिक सोच के साथ जीने का मतलब है मोटा माल कमाने और ख़र्च करने की क्षमता रखना।
      भारत के अधिकांश लोग 20-50 रूपये प्रतिदिन कमाते हैं। सो वैज्ञानिक सोच और वैज्ञानिक संस्थान व आधुनिक अस्पताल उनके लिए नहीं हैं। इनकी दादी और उसके नुस्ख़े ही इनके काम आते हैं।
      यही लोग वैकल्पिक पद्धतियां आज़माते हैं, जिनके पास कोई विकल्प नहीं होता।
      बीमारियां केवल दैहिक ही नहीं होतीं बल्कि मनोदैहिक होती हैं।

      ...और मन एक जटिल चीज़ है।
      मरीज़ को विश्वास हो जाए कि वह ठीक हो जाएगा तो बहुत बार वह ठीक हो जाता है।
      मरीज़ को किस आदमी या किस जगह या किस बात से अपने ठीक होने का विश्वास जाग सकता है, यह कहना मुश्किल है।
      यही वजह है कि केवल अनपढ़ व ग़रीब आदमी ही नहीं बल्कि शिक्षित व धनपति लोग भी सेहत के लिए दुआ, तावीज़, तंत्र-मंत्र करते हुए देखे जा सकते हैं।
      आधुनिक नर्सिंग होम्स के गेट पर ही देवी देवताओं के मंदिर देखे जा सकते हैं। मरीज़ देखने से पहले डाक्टर साहब पहले वहां हाथ जोड़कर प्रार्थना करते हैं कि उनके मरीज़ों को आरोग्य मिले।

      आपकी पोस्ट अच्छी है लेकिन चिकित्सा के पेशे को जिस तरह सेवा से पहले व्यवसाय और अब ठगी तक में बदल दिया गया है, उसी ने जनता को नीम हकीमों के द्वार पर धकेला है।
      Please see
      http://commentsgarden.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
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      1. अनवर जी , समय निकालने के लिए शुक्रिया ।
        जीवन के बारे में कोई नहीं बता सकता । किसे पता था कि शास्त्री जी वार जीतने के बाद विदेश में बिना कारण स्वर्ग सिधार जायेंगे ।
        प्लेसिबो से कोई ठीक नहीं होता । यह बस एक भ्रम है । असल में कुछ रोग होते ही ऐसे हैं जो बिना इलाज भी ठीक हो जाते हैं जैसे वाइरल फीवर । १- ७ दिन में बुखार उतरना लगभग निश्चित है । लेकिन कोई डॉक्टर यह नहीं बता सकता कि एक दिन में उतरेगा या ७ दिन में । आप ६ दिन तक एक डॉक्टर की दवा लेकर , हारकर सातवें दिन दूसरे डॉक्टर के पास जाते हैं और बुखार उतर जाता है । नया डॉक्टर तो हो गया आपके लिए भगवान ।
        बेशक आजकल इलाज बहुत महंगा हो गया है । लेकिन सरकारी अस्पतालों में अभी भी मुफ्त होता है और अच्छा इलाज होता है ।
        हमारी अधिकांश आबादी अभी भी उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है । इसीलिए आर्थिक विकास में हम इथिओपिया से भी नीचे हैं ।
        सुशिक्षित लोग भी तंत्र मन्त्र के चक्कर में पड़ते हैं , यह देखकर सिवाय दुःख प्रकट करने के और कुछ नहीं कर सकते ।
        देवी देवताओं के दर्शन मन को सकूं पहुंचाते हैं क्योंकि आखिर डॉक्टर भी भगवान नहीं होता ।
        अभी वह दिन दूर है जब हम मृत्यु पर विजय प्राप्त कर लेंगे ।
        आपने दिए गए उदाहरणों पर प्रकाश नहीं डाला !
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      2. भारतीय संस्कृति में दादी मां की आवश्यकता क्यों ?

        दराल जी,
        टिप्पणी पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया !
        1. आपने लालबहादुर शास्त्री जी के स्वर्ग सिधारने की बात कही है। आप स्वर्ग नर्क को मानते हैं लेकिन बहुत लोग स्वर्ग नर्क की मान्यता को अंधविश्वास और कल्पना मात्र मानते हैं और अपनी नास्तिक सोच को वैज्ञानिक बताते हैं।
        जब दो विचार टकराएं तो किस विचार को वैज्ञानिक माना जाए ?, इसके लिए हमारे पास कोई पैमाना होना चाहिए।
        ...और यह भी कि सिधारने वाला स्वर्ग ही सिधारा है या कहीं और ?
        वर्ना केवल दिवंगत आदि कहना चाहिए।

        2. सरकारी अस्पताल देश की सवा अरब की आबादी के कितने प्रतिशत लोगों को सेवा दे पाते हैं ?

        3. अपने रूतबे से हटकर आप किसी गांव-क़स्बे के सरकारी अस्पताल में किसी रोगी को इलाज के लिए लेकर तो जाएं, आपका तजर्बा आपको बताएगा कि सरकारी अस्पतालों के इलाज कितने अच्छे हैं ?

        4. विज्ञान ने तरक्क़ी की तो उपचार ने भी तरक्क़ी की। उपचार महंगा हुआ तो चिकित्सक बनने के लिए केवल योग्यता ही काफ़ी न रही, मोटा इन्वेस्टमेंट भी एक आवश्यक शर्त बन गया। मोटे इन्वेस्टमेंट के बाद मोटा मुनाफ़ा भी लाज़िमी हुआ। अब डाक्टर सेवक कम और व्यापारी ज़्यादा हो गया।

        5. कमीशन के लिए ग़ैर ज़रूरी टेस्ट और दवाएं लिखने वाला डाक्टर तो ठग ही हुआ। अब डाक्टर के रूप में व्यापारी और ठग ज़्यादा हैं और सेवक कम। वैज्ञानिक तरीक़े से इलाज कराने वालों की एफ़.डी. टूटते और ज़मीन बिकते हुए देखी जा सकती है। डाक्टर अमीर और अमीर होते चले जा रहे हैं और मरीज़ कंगाल। इधर का माल उधर जा रहा है और यह सब इलाज के नाम पर हो रहा है।

        6. कन्या भ्रूण हत्या करने वाले सुपारी किलर डाक्टर भी वैज्ञानिक सोच वाले होते हैं। इनमें से किसी के भी विरूद्ध कोई प्रभावी कार्यवाही कभी हुई हो, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है।

        7. तनख्वाह और सुविधाओं में बढ़ोतरी के लिए डाक्टर सामूहिक हड़ताल पर चले जाते हैं और इस दरम्यान सैकड़ों लोग मर जाते हैं। तब चंबल के हत्यारे डाकुओं और इन हत्यारे डाक्टरों में कोई अंतर शेष नहीं रहता।

        8. गांव और ग़रीबों के बीच ये डाक्टर जाते नहीं हैं। गांव के लाचार बीमारों के पास उनकी ‘दादी मां‘ ही शेष रहती है। उनका इलाज ‘दादी मां‘ की मजबूरी है, उसका शौक़ नहीं है।

        9. इलाज हरेक नागरिक का बुनियादी हक़ है। इसके लिए उसके पास काफ़ी रूपया हो, यह हरगिज़ ज़रूरी नहीं होना चाहिए।

        10. गर्भधारण, प्रसव और शिशु पालन के विषय में गांव की बहुओं की जितनी मदद इन ‘दादी मांओं‘ ने की है। उसकी कोई तुलना किसी सरकारी ‘आशा‘ या किसी एनजीओ से नहीं की जा सकती।
        मां का स्पर्श ही शिशु के लिए दर्द निवारक है। यह एक चमत्कार भी है और एक वैज्ञानिक तथ्य भी। मां के रूप में एक चिकित्सक सदा ही शिशु के साथ रहता है। यह ईश्वर का एक वरदान है। उसका दूध शिशु के लिए अमृत है। यह भी एक वैज्ञानिक तथ्य है। टीवी आदि के ज़रिये ज़रूरी विषयों की जानकारी घर घर आम की जाए तो मां की कार्यकुशला को बढ़ाया जा सकता है।

        11. आपने कहा है कि
        ‘हमारी अधिकांश आबादी अभी भी उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है। इसीलिए आर्थिक विकास में हम इथिओपिया से नीचे हैं।‘
        यह बात ठीक उल्टे रूप में कही जानी चाहिए कि
        ‘हमारे यहां टैक्स चोरी और रिश्वतख़ोरी का स्तर इथिओपिया से अधिक है। इसीलिए हमारी अधिकांश आबादी उचित स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित है।‘
        टैक्स चोरी में वैज्ञानिक सोच वाले डाक्टर किसी से पीछे नहीं हैं।

        12. आप देवी देवताओं के दर्शन को शान्तिदायक मानते हैं लेकिन तंत्र-मंत्र का सफ़ाया चाहते हैं। जबकि तंत्र-मंत्र देवी देवताओं से ही जुड़े हुए हैं। जब तक देवी देवताओं में आस्था रहेगी तब तक लोगों की आस्था तंत्र-मंत्र में भी बनी रहेगी। देवी देवताओं में आस्था रखते हुए भी लोग तंत्र-मंत्र से दूर कैसे रहें ?, इसका कोई उपाय हो तो उदाहरण सहित अवश्य प्रकाश डालें।

        नोट- यह टिप्पणी केवल तथ्य केंद्रित है। कोई विशेष पद्धति अथवा कोई व्यक्ति विशेष इसका विषय नहीं है।
        Delete
      3. डॉ अनवर ज़माल जी , आपने जो तथ्य प्रस्तुत कियें हैं , वे सत्य हैं । इन्हें झुठलाया नहीं जा सकता । बेशक , भ्रष्टाचार का प्रभाव चिकित्सा क्षेत्र में भी पड़ा है । हालाँकि सबको एक डंडे से नहीं हांका जा सकता ।
        लेकिन यहाँ चिकित्सा को गाँव गाँव तक पहुँचाने की ज़रुरत है । इसके लिए सरकार को प्रयत्न करना पड़ेगा । अपने आप कोई नहीं जाना चाहता , आराम की जिंदगी छोड़कर । वैसे भी डॉक्टर्स भी इन्सान होते हैं जिनकी अपनी ज़रूरतें होती हैं । मरीजों का नीम हकीम के पास जाना एक मज़बूरी हो सकती है लेकिन इसे सही नहीं ठहराया जा सकता ।
        देवी देवताओं का तंत्र मन्त्र से कोई सम्बन्ध नहीं है । धार्मिक विश्वास और अंध विश्वास में फर्क होता है ।

        हमारा एक और कमेंट भी इसी पोस्ट पर है-
        Delete
        @ डा. श्याम कुमार गुप्ता जी ! एक्यूपंक्चर में शरीर में ऊर्जा के प्रवाह के लिए जो मेरीडियंस मानी जाती हैं। वे किसी भी चीरफाड़ में नहीं देखी जा सकी हैं।
        इसी तरह होम्योपैथी में 12 शक्ति से ज़्यादा शक्ति वाली दवा को लैब में टेस्ट किया जाता है तो उसमें किसी दवा का अंश नहीं मिलता।
        एक्यूपंक्चर की ऊर्जा ‘ची‘ और होम्योपैथी की दवा का उच्चीकृत अंश, दोनों ही सूक्ष्म हैं। इसीलिए ये दोनों ही असरकारी नतीजे देने के बावजूद विज्ञान की पकड़ से बाहर हैं।

        हर चीज़ को विज्ञान पकड़ ले, यह संभव नहीं है और न ही विज्ञान इसका दावा करता है।
        विज्ञान का दायरा सीमित है और सत्य इसके दायरे से बड़ा है।
        अतः सत्य विज्ञान के दायरे में भी है और इसके बाहर भी।

        जो कुछ विज्ञान के दायरे के बाहर है, वह असत्य और मिथ्या है, यह सोचना ठीक नहीं है।

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