अंबानी,टाटा, बिड़ला नाम सुनने पर अच्छे लगते हैं लेकिन जब आम आदमी की जेब इनकी कंपनियां काटती है तो, इन बड़े लोगों पर तरस भी आ जाता है कि यह लोग जो अरबों खरबों में खेल रहे हैं वह सब चोरी का पैसा है! यहां तक लगता है यह ईमानदारी से शायद दो रोटी भी खाने लायक पैसा नहीं कमा सकते! इससे अच्छा तो एक ईमानदारी आदमी ही है। जो भी व्यक्ति मोबाइल यूज करता है वह इस तरह की धांधलियों से बहुत परेशान हो जाता है। प्रीपेड यूजर तो कुछ कर ही नहीं सकते बजाय इसके कि वह कस्टमेयर केयर वाले को गाली दें। आपके मोबाइल से कब पैसे किस सर्विस का काट ले आपको पता ही नहीं चलेगा। कॉल रेट कब 1 पैसा है और कब 1 रूपए, अगर आपके पास टाइम हो तो कस्टमर केयर से पता करते रहिए। मोबाइल में पैसे डालते ही लगता है कि उस पर चोरों, डकैतों की नजर लग गई है। अगर उस पैसे को आपने उस दिन खत्म नहीं किए तो लालची मोबाइल कंपनियों 2—4 दिन में किसी न किसी तरह वह पैसा गायब कर ही देंगी। 10—50 रूपए करते—करते यह आंकड़ा 1000 में पहुंच जाता है और ऐसे ही करोड़ों मोबाइल यूजरों को मिला लिया जाए तो यह अरबों में पहुंच जाता है। इस समस्या से हर आदमी जो मोबाइल यूज करता है परेशान है। एक कंपनी जिसका बिना नाम लिए भी लोग जान जाएंगे, वह तो कुख्यात है कस्टमरों के पैसे हड़पने में। अभी इसी कंपनी का मैसेज मेरा पास आया जिसमें वह बता रही थी कि उसे सर्वश्रेष्ठ सर्विस का पुरस्कार मिला है। अब आप समझ सकते है कि उसे सर्वश्रेष्ठ का पुरस्कार इसलिए मिला कि पहले उसने आम लोगों के फटी जेब में भी डाका डाला और उस पैसे में से कुछ हिस्सा पुरस्कार बांटने वाले को खिला दिया होगा! इससे अच्छा तो यह होता कि यह कंपनी अपने ग्राहकों को फोन करके अपनी रिपोर्ट कार्ड बनवाती। अगर वह अच्छा होता तो वह वाकई में सर्वश्रेष्ठ बनने की हकदार होती न कि बिके हुए पुरस्कार मिलने से वह सर्वश्रेष्ठ हो गईं। यह तो सड़ाध को ढकने जैसा है।
कभी ताइवान ही असली चीन था
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ताइवान का आधिकारिक नाम है ‘रिपब्लिक ऑफ़ चाइना’। पहले मेनलैंड चीन का यही नाम
था, पर आज वह ‘पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना’ है, जो 1949 के बाद बना।1949 में
माओ-...